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________________ १८८] आत्म कथा लगूंगा, उन्हें भय था कि पढ़ लिख कर यह पुजारी बन जायगा और भूखों मरने लगेगा, ऐसे दो चार भक्तों के उदाहरण भी वे मुझे दिया करते थे. अमुक आदमी पुराण बांचता है, ख़ब पूजा करता है पर घर में खाने को नहीं है, इसलिये वे पढ़ना छुड़ाकर मुझे किसी धंधे में लगा देना चाहते थे। इसके लिये घर की गरीबी भी उन्हें परेशान करती थी और लोग भी उन्हें सताते थे। जब मैं छुट्टी में घर आने लगता तब एक तरफ जहाँ पत्नी से मिलने की कल्पना से आनन्द होता वहां लोगों के वाग्वाणों की याद से कापने लगता। घर आने पर जव देखो तब हृदय इस बात से धुक धुक होता रहता . कि न जाने कौन पड़ौसी कब क्या बात कह बैठेगा ? परन्तु पढ़ाई को ठिकाने पर पहुँचाने का मैं दृढ़ निश्चय कर चुका था । सब. का अपमान सह जाता, एकान्त में रोता पर पढ़ना छोड़ने का विचार न करता। '. पिताजी ने जब देखा कि घर आने पर बेशर्मी से यह सव की बातें सह जाता है पर किसी की बात नहीं मानता तब एक बार उनने. मुझे चिट्ठी लिखवाई जिसका सार यह था कि अब मैं तुम्हारा कब तक पालन पोषण करूंगा ? इस पत्र को पढ़ते ही मेरी सहन-शक्ति का दिवाला निकल गया । मैं मन ही मन गुनगुनाया कि ये विषेले वाग्वाण अब छुट्टी के दिनों में घर पर ही नहीं मारे जाते अब ये पत्र द्वारा भी मारे जाने लगे हैं । क्षोभ से मेरा खन उबलने लगा और दिल में आया कि . पढ़ाई भी छोड़ दूं और सदा के लिये कहीं चला जाऊँ जिससे इन लोगों को न. मुँह देखना पड़े न
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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