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________________ विवाह के दुष्परिणाम [ ८७ करो । पड़ौसी कहते - "भैया, क्या बाप बुढ़ापे तक बैल सरीखा जुता ही रहेगा ? क्या तुन्हें जन्मभर पालता पोसता रहेगा ? तुम्हें बापने इतना लम्बा आदमी बना दिया, तुम्हारी शादी करदी, अब और क्या चाहते हो ?" कोई कोई चतुर पड़ौसी सतर्कता बताते हुए कहते "भैया, क्या शादी के बाद भी इस तरह घर छोड़कर रहा जाता है ? इस तरह तो स्त्रियाँ बिगड जातीं हैं, घर छोड़कर चलीं जातीं हैं आदि ।" 1 हर एक छुट्टी के अवसर पर डेढ़ दो महीने तक ये सदुपदेश सुनने पड़ते । जान पहिचान के जितने आदमी मिलते वे अपने अपने [कोमल या कठोर ] ढंग से मुझे इस विषय पर व्याख्यान सुनाते । मैं पढ़ना छोड़कर व्यापार वगैरह करने लगूं या कहीं १०-१५ रुपया महीने की नौकरी करलं इसके देखो अमुक लड़का तुम्हारे बराबर है पर हर कमाकर ले आता है और एक तुम हो जो इतने औरत रख कर भी बाप की कमाई खा रहे हो । लिये कहा जाता: • एक दिन चार आने पट्ठे होकर भी और पिताजी की महत्वाकांक्षा बहुत नहीं थी । अगर मैं २०) महीना कमाने लगू तो वे अपने और मेरे जीवन को सफल मान लेते । पर मैं व्यापारी मनोवृत्ति का या उस योग्यता का आदमी नहीं था और पंडिताई के लायक योग्यता पा नहीं सका था। मैं सोचता या कि.. बीच में पढ़ना छोड़ने से न इधर का रहूंगा न उधर का, "" किसी तरह न्यायतीर्थ हो जाना चाहता था । पिता जी को विश्वास नहीं था कि मैं पढ़ने के बाद पच्चीस पचास रुपया मासिक कमाने
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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