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________________ विवाह के दुष्परिणाम [८९ इन्हें अपना मुँह दिखाना पड़े। पर जन्म से ही मैं कुछ हिसाबीकिताबी आदमी हूं इसलिये उत्तेजना के समय में भी कोई उससे भी भीतर की मनोवृत्ति लाभ-हानि का. हिसाब लगाती रहती है इसलिये उत्तेजना से होनवाले बहुत से दुप्फलों से बच जाता हूं। पर इसमें एक यह बुराई भी हैं कि अतिसाहस का जीवन में स्थान नहीं रहता । साधारणतः तो अतिसाहस नुकसान ही पहुंचाता है परन्तु कभी कभी अतिसाहस से मनुष्य बड़े बड़े काम भी कर जाता है । ज्यादः हिसाब किताव लगाने से मनुष्य बहुत कम काम कर पाता है । कौन कह सकता है कि इस हिसाबी मनोवृत्ति ने मेरे जीवन की गति को कुंठित नहीं किया है । हां यह भी सम्भव है कि इस हिसावी मनोवृत्ति के कारण मैं ऐसी परिस्थिति में पड़ने से बच गया होऊ जहां का बोझ मैं न सह पाता, पतित हो जाता या पीछे लौट आता। खैर, यह सर्वज्ञता प्राणी के भाग्य में नहीं है । उस समय. घर छोड़ने आदि की बात छोड़कर मैंने पिताजी को एक कठोर पत्र लिखा जिसका सार यह था कि- "तुमने मेरी बिना अनुमति के बाल्यावस्था में मेरी शादी करदी है इसलिये शादी की जिम्मेदारी मेरे ऊपर नहीं है तुम इतना बोझ नहीं सह सकते थे तो मेरी शादी. क्यों की ? मै अकेला कुछ भी करता । अब मैं न तो पढ़ना छोड़ना चाहता हूं न घर आना चाहता हूं। जब तक मैं पैसा पैदा न करने. लगू तब तक के लिये अपनी पुत्र-वधू ( मेरी पत्नी ) को शाहपुर भेज. दो, समझलो तुम्हारा लड़का मर गया है तुम्हारी पुत्र-वधू विधवा हो गई है। हमारे देश में विधवाएँ पवित्रता से सारा जीवन
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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