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________________ सागर पाठशाला में प्रवेश [३७ फटकारा | सत्य बोलना ही जीवन है इस पर एक व्याख्यान सा झाड़ गया मानों अपने पिता से सत्य बुलवाने की ठेकेदारी मुझे ही · मिल गई हो। - इस प्रकार १५-२० दिन लड़ने के बाद मैं भाई उदयचन्द के साथ सागर पाठशाला में पढ़ने भेज दिया गया । (४) पाठशाला का जीवन सागर पाठशाला का नाम छोटा न था। वह 'सत्तर्क सुधा तरङ्गिणी दिगम्बर जैन पाठशाला' कहलाती थी। आज तो उसकी विशाल इमारत हैं पर उन दिनों वह चमेली चौकके एक मकान में थी। पाठशाला में मेरे जीवन में काफी परिवर्तन हुआ। अपने हाथ से कपड़े धोना, झाडू लगाना कभी कभी वर्तन मलना, खास खास दिनों में रसोइया को मदद करना, अध्यापकों की लकड़ी लाना, उनकी शाक वगैरह वनाना आदि बहुत से कार्य मैं सीख गया । घर पर शायद जीवन भर ये छोटे छोटे काम न सीख पाता । घर पर खिलाड़ी पूरा था पर काम का परिश्रम जरा भी न होता .. था । यहाँ आदत पड़ी। साथ ही विनय और नियमितता भी काफी आगई मितव्ययी या कंजूस भी हो गया । पाठशाला की तरफ़ से हाथ खर्च के लिये चार आने महीने मिलता था और करीब आठ आने महीना पिताजी देते थे । इस प्रकार बारह आने महीने मेरे हाथखर्च का बजट था। - घर पर तो दिन में कई बार कुछ न कुछ खाने को मिल जाता था और सवेरे कलेवा तो अवश्य मिलता था । पर पाठशाला
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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