SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ ] आत्म कथा झाड़ · के नीचे से निकलना मेरे लिये सब से कठिन कार्य था । एकाध आदमी साथ हो तब भी मैं डरता था फिर अकेले की तो बात ही निराली थी । पर यह कहना चाहिये कि उस रात में मुझ में असीम साहस आ गया था । उस झाड़ के नीचे से मैं हिम्मत करके निकल आया । पर पिताजी को मेरी इस हिम्मत से क्या मतलब, वे स्टेशन पर चलने को राजी ही न होते थे । वहुत रोया, बकझक की, अन्त में इतना झूठ भी बोला कि तुम्हें पंडितजी ने और काम से बुलाया है और कहा है कि दरवारीको भेजना हो भेजो, न भेजना हो मत भेजो, पर मुझसे एकबार जरूर मिल जाओ । इस पर वे किसी तरह राजी हुए और मैं उन्हें लेकर स्टेशन पहुंचा । पंडितजी का प्रभाव इतना था कि उनके सामने मना करने की हिम्मत पिताजी में नहीं थी । युक्ति तर्क आदि की अपेक्षा प्रभाव कितना बलवान है इसका मुझे अच्छा अनुभव हुआ । उस रात का आनन्द एक अनिर्वचनीय आनन्द था । रातभर मैं इसी कल्पना में मस्त रहा कि मैं पंडितजी वन गया हूं बड़ी बड़ी सभाओं में शास्त्र पढ़ रहा हूं लोग मुझसे पंडित जी पंडितजी कह रहे हैं, बस मैं कृतकृत्य हूं । . दो चार दिन बाद मैंने पिताजी से सागर भेज देने की बात कही पर उनने फिर मना करदिया । पर अब तो मुझ में लड़ने की हिम्मत आगई थी । मैंने कहा- अगर तुम्हें नहीं भेजना था तो उस दिन पंडितजीसे क्यों कहा ? जानते हो महापुरुषों के साथ झूठ बोलने से कितना पाप होता है ? वसु राजा की कैसी दशा हुई थी । इस प्रकार पुराणों की पंडिताई बता बताकर मैंने उन्हें खूब .
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy