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________________ सागर पाठशाला में प्रवेश [३५ की पहिली क्लास में पढ़तेथे । मेरा इनका घरोबा था। हां, कभी कभी लडकों के नायकत्व के कारण झगड़ा हो जाता था इसलिये बोलचाल भी बन्द हो जाती थी थोड़ी बहुत मारपीट भी हो जाती थी। पर मित्रता कौटुम्बिकता में परिणत हो गई थी इसलिये स्थायीरूप में विच्छेद कभी नहीं हुआ । इनके पिताजी की भी इच्छा थी कि गुट्टी को सागर भेजाजाय। मैं भी गुट्टी के साथ हो गया किसी तरह पिताजी को खींचकर पं. गणेशप्रसादजी के पास ले गया । सबके दबाव में आकर उनने मुझे सागर भेजना मंजूर कर लिया। घर आने पर बुआजी ने कहा--अकेले लड़के को कहाँ जाते हो ? बस, पिताजी को इतना इशारा काफी था उनने फिर मना कर दिया । पर मैंने हिम्मत न हारी । जिस दिन पं. गणेशप्रसादजी सागर जानेवाले थे उस दिन शाम से ही मैं उनके पीछे पीछे फिरने लगा । पर उनसे बात करने की हिम्मत न पड़ी । इस प्रकार रात के १२॥ बज गये । दो बजे गाड़ी जाती थी तब मैंने बड़ी हिम्मत करके उनसे कहा-मुझे साथ ले चलिये | उनने कहा--ऐसे कैसे ले चलू? तुम्हारे पिता तो फिर आये ही नहीं । तुम अपने पिता को लेकर स्टेशन आओ उनसे बातचीत होने पर जैसा होगां देखा जायगा। १२॥ बजे रात को मल्लपुरा से घर लौटा । उतनी रात को उन गलियों में से घर आने का यह पहिला ही अबसरं था । और तो ठीक, लेकिन एक गली के एक विशाल इमली के झाड़ पर सैकड़ों भूतों के रहने की किंवदन्ती थी। इन भूतों को कव : कब किस किसने किस किस तरह देखा यह सब याद था, रात में उस
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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