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________________ ३४] आत्म कथा रही थी। उसी की प्रेरणा थी की मैं प्रतिदिन मन्दिर में जाता था। और कोई स्त्री शास्त्र सुननेवाली मिल जाती तो शास्त्र अर्थात् पद्मपुराण भी पढ़ता था । इस प्रकार पंडित वनने की भावना जगी रहती थी और खिलाडी जीवन में भी वहाँ से निकलकर उन्नति करने की प्रेरणा मिलती रहती थी। सागर पाठशाला में प्रवेश बुंदेलखंड के जैन समाज में पं. गणेशप्रसाद जी का बहुत नाम है । वे सागर पाठशाला के संस्थापक और अधिष्ठाता हैं । एकवार वे दमोह आये । वे शास्त्र में क्या पढ़ते थे यह तो नहीं समझ सका पर खूब पढ़ते थे, उनका आदर भी खुब होता था, उन्हें देख कर फिर पंडित बनने की लालसा तीन हुई, पर पिताजी से कहना व्यर्थ था वे मुझे बाहर भेजने को तैयार न थे इसलिये . मैं उन पंडितजी के पास गया और एकान्त में मिलने के लिये घंटों बार देखता रहा । बड़ी मुश्किल में एकान्त पाकर साहस वटोर कर मैंने उनसे कहा- मैं पढ़ना चाहता हूं आप भरती करलें । उनने सब हाल चाल पूछ कर कहा-तुम्हारे पिता कहेंगे तो तुम्हें भरती कर लूंगा । मुझे मानों देवता का वरदान मिल गया । मेरे साथी भाई उदयचन्दजी लहरी थे जिन्हें मैं उस समय गुट्टी कहा करता था उनके घरवाले भी उन्हें इसी नाम से बुलाते थे। हम दोनों ने शिशुवर्ग में एक साथ प्रवेश किया था और एक साथ प्रायमरी में पास हुए थे। मैंने पढ़ना छोड दिया था वे अंग्रेजी
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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