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________________ पत्नी वियोग [२३७ का अच्छा प्रमाण मिला कि मौत को जीतने पर ही अच्छी तरह जिया जा सकता है । यही कारण है कि उसदिन के बाद वह जितने दिन जिन्दी रही उल्लास के साथ रही बीमार की मनोवृचि लेकर न रही। काली के डाक्टर ने जब मात की पूरी मचना देदी तब यह सोचकर कि जब मरना है तब घर पर आराम से ही क्यों न मरे, मैं उसे बम्बई ले आया । काली के छोटे से डाक्टर की स्ववादिता ने कितना उपकार किया और बाबई के बड़े बड़े डाक्टरों ने कोई चेतावनी न देकर कितना पाप किया उसकी याद आज भी बनी हुई है और मेरा विचार यह होगया है कि डाक्टरों को डाक्टरी सीखने की जितनी जरूरत है उससे ज्यादा अपने अज्ञान को समझने की, अपने ऊपर अतिविश्वास न करने की, रोगी पर उपेक्षा न करने की उसके पालक को सावधान करने की और ईमानदारी की जमात है । या तो मेरे बहुत से विद्यार्थी भी हास्टर है मित्र भी डाक्टर भले और सहदय डाक्टरों से भी काम पड़ा। फिर भी बहुत से ऐसे डाक्टरों ने याम पड़ा कि जिनके अनुया. ने डासहर जाति से पूणा सी पैदा करदी है। खासकर सरकारी या सावजनिक अस्पतालों के द्वारटरोंके और उनये असतानों के प्रथम के तो बहुत बहुर अनुभव ।। काली से लौटने के यो दिन बाद की बात है, एकवार पिताजी बाजार में शाम माजी लेने गये और दाम के नीचे आगये, उससे यहोश होगये, याचे की हद का और उप पुष्टि न लजासर जे.. हाटिन में भेड़ दिया । इयर शाक
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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