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________________ २३८ । आत्म-कथा लेकर वडी देर तक न आये तब मैं दृढने निकला, सब मित्रों के घर देखे, पुलिस चौकियों पर तलाश किया कि कोई अकस्मात् हुआ हो तो उसकी रिपोर्ट से कुछ पता लगे, अन्तमें एक चौकी पर पता लगा तदनुसार दृढ़ते दूढते दुपहर के एक बजे मिले । वे बेहोश पड़े थे । . .. 'जब मैं उनके पलंग के पास पहुंचा तो वहां देखरेख करनेवालों ने तुरंत रोका, कहा-अभी नहीं शामको मिलने आना । मैंने कहा रोगी को यहाँ मैंने भरती नहीं कराया है, टाम के नीचे आजाने से पुलिस ले आई है आज के दिन मुझे इनके पास रहने दो फिर इनके होश आजाने पर और व्यवस्था होने पर तुम्हारे नियमानुसार ही मिलने आऊंगा। .. उसने कहा-नहीं नहीं, हम कुछ नहीं समझत, शामको आना। मैंने वहां के किसी डाक्टर से बात करना चाही पर उस समय वह भी न मिला और मुझे वहां से चला आना पड़ा । खैर, घर आकर मैंने पत्नी को तथा पड़ोसियों को खबर दी, बाजार से मोसम्मी खरीदी, और फिर हास्पटिलं पहुंचा । मैंने देखा पिताजी बिलकुल शिथिल हैं अभी भी कुछ कुछ बेहोश हैं, मुंह में से थोड़ा थोड़ा खून आता है पर किसी को कोई पर्वाह नहीं है । मैने-कहा भाई, इनको सुबह से कुछ दिया नहीं गया है गरम प्रकृति है कुछ मोसम्मी का रस देने दो। पर उन लोगों ने कहा-नहीं, डाक्टर साहिब से पूछे विना कुछ नहीं कर सकते। नौकरों का कहना ठीक था पर व्यवस्थापक खुद तो कुछ करते नहीं थे, रोगी का सेवक मोसम्मी का रस न पिला जाय सिर्फ इसकी व्यवस्था वाकायदा थी। मैंने डाक्टर से बात की पर संव पिंड छुड़ानेवाले मिले। बोले-हम
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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