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________________ २१० ] आत्मकथा था पर मैं उसका समर्थक हूं. यह बात बहुतों को मालूम थी । पर मेरी परिस्थिति कठिन थी । विजातीय विवाह के आन्दोलन के कारण. मैं एक जगह से निकाला गया था अब विधवाविवाह के आन्दोलन के कारण भगाया जाऊं अथवा न भगाया जाऊं तो जिन संस्थाओं :. में काम करता हूं उन को समाज के कोपका शिकार बनाऊं, दो में से किसी एक लिये भी मेरी तैयारी न थी । उधर न. शीतलसादजी पर 'चारों .. तरफ से बौछारें पड़ रही थी अगर उस समय विधवाविवाह के समर्थन में आन्दोलन नहीं चलाया जाता तो त्र. जी एक विकट इस बात को कोई सुधारक न चाहता संकट में पड़ जाते, था पर किया क्या जाय । . जी के दो-दो तीन-तीन दिन में पत्र आते थे कि 'मुझे धैर्य बँधाइये, आन्दोलन शुरू कीजिये, पंडितों का सामना कीजिये आदि ' मेरा भी मन उछल रहा था पर परिस्थिति लगाम खींच रही थी । માઁ . • वैसे मेरी इच्छा खुद ही किसी ढंग से दो-तीन वर्ष बाद 'विधवा-विवाह का आन्दोलन उठाने की थी । मुनिवेषियों के साथ भिड़ना शुरू ही किया था । इस मोर्चे को ठिकाने लाने के बाद विधवा-विवाह-आन्दोलनः उठाने की इच्छा थी । एक साथ दोनों आन्दोलन चलाने में काम का बोझ तो बढ़ता ही था साथ ही एक साथ सामाजिक विक्षोभ भी इतना बढ़ता था कि उसका सामना करना कठिन था । : ' पर परिस्थिति कुछ भी हो, अवसर आन्दोलन खड़ा करने का आगया था । इसी समय वैरिस्टर चम्पतराय जी ने विधवा विवाह के
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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