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________________ विविध आन्दोलन [ २०९ ' तंगक्रिया · कि उन्हें अपने विचार प्रगट कर देने पड़े। . “. : ....: प्रगट तो कर दिये पर इस बात को लेकर अगर विजातीय- विवाह आन्दोलन..की तरह उग्र आन्दोलन न मचाया जाय तो बदनामी के सिवाय और कुछ भी हाथ आनेवाला नहीं है, इसबात को सब समझते थे। . . . . . . . विधवाविवाह “का आन्दोलन 'इसके पहिले भी चल चुका था । स्व. श्री दयाचन्दजी गोयलीय ने कुछ समय तक यह आन्दोलन खूब चलाया था, श्री नाथूरामजी प्रेमी, श्री सूरजभानुनी वकील । आदि ने भी जोर लगाया था इतना होनेपर भी वह आन्दोलन ठंडा पड़ चुका था । विधवाविवाह का समर्थक होना तंत्र भी लजा की बात समझी जाती थी। - वात यह है कि विधवाविवाह के विषय में धर्मशास्त्र की दृष्टिसे विचार न हुआ था यां बहुत कम हुआ था और उसके समर्थन में भाषा भी पंडिताऊ नहीं थी। साधारणतः समर्थन का रुख यह होता था कि 'विधवाविवाह धर्मविरुद्ध भले ही हो पर यह समय की आवश्यकता है. इसलिये उसका प्रचार होना चाहिये ।' . . . समाज की परिस्थिति जैसी है, वह धर्म से न सही पर धर्म के नाम से जैसी चिपटी है, उसे देखते हुए किसी सदिविरुद्ध बात का धर्मविरुद्ध कहते हुए भी प्रचार करना एक टांग से दौड़ना है। विधवाविवाह के समर्थन में मेरी नीति कुल जुदी थी मैं उसे धर्मानुमोदित ही नहीं, जैनधर्म का आवश्यक अंग सिद्ध करना चाहता था। मेरी नीति का तो किसी को पता न था या बहुत कम को
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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