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________________ शासन विपय वपयोगी पदार्थोके उन छह विभागों अर्थात् (१) काल, (२) स्थान, (३) शक्ति, (४) मनुष्य-आत्मा, (५) इच्छा पूर्वक कार्य, (६) जीवन क्रियायोमें जो रमिनालोजी औफ दि वेदज ( देखो पृष्ठ ५३-५४ मे वर्णन पाया जाता है। बावजूद इसके किमि० गुरुदत्तने यह विमाग वन्दी वैदिक देवताओं के निर्णय एरने के लिये विशेपतरा बनाई थो, जो न वैज्ञानिक ढग पर न दार्शनिक विचारसे किसी प्रकार निर्दोष हो सक्ती है । उपणता वास्तवमें शक्तियोंके विभागमें सम्मिलित हो सक्ती है जैसे कि वह वाकई है परन्तु उसका अपनी पांतिकी अन्य प्राकृतिक शक्तियोंसे अग्रगामी होनेका अधिकार अभी प्रमाणित होनेको शेष है। इस प्रकार हम अपने आपको इस बातके माननेके लिये वाध्य पाते है कि वेदोके मन्त्रोमें देवताम्रोके तौर पर वर्णित अग्नि और इन्द्र उष्णता या अश्व विद्या और शासनपर्ता जाति का अर्थ नहीं रखते हैं, वरन् आत्माके कतिपय गुणों या पर्यायोंके वाचक हैं। इसी प्रकार श्रायु और पृथ्वी, श्राफाश और भूतल नहीं है परन्तु क्रमानुसार श्रात्मा और पुनल है। पुष्टि दाता पूषण इसी प्रकार आयुका (जो जीवन शक्तिका नियत करनेवाला है' ) रूपक है । यद्वा कभी २ वह प्रकाशके देवताओं में भी गिना जाता है कारण कि प्रायु कमकी स्थिति तक ही शारीरिक बलका होना संभव है। यह बात कि पूषनका वर्णन यात्रीके तौर पर आया है उसके यथार्थ भावका एक और सूचक है,
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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