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________________ (१०) प्रसिद्ध चिन्ह नहीं रहे हैं। भावार्य-कि यह विचारों की अस्पष्टता और गडबडोसे जो धार्मिक काव्यका मुख्य चिन्ह है, कभी असंयुक्त नहीं रहा और इसकी जड एक चिन्दरूपी मन्त्रों के संग्रह परही मुख्यतया निर्भर है, जो व्यक्तिगत मानी दुई शक्तियों गणों आदिको अर्पित हैं-अतः उन काल्पनिक देवताओंका फज जो भूतकालके ऋपि कवियों की मानसिक उलझनोंमें मगन रहने वाली कल्पना शत्तिसे उत्पन्न हुये है। जव हम जैन धर्मकी ओर देखते हैं तो हमको इससे एक विल्कुल विलक्षण वान दिखाई पड़ती है । जैन धर्म एक केवल वैज्ञानिक धर्म है और प्रात्मा अथवा जीवनके सिद्धान्तको पूर्णतया समझने पर असरार करता है। इसमें समयानुकूल परिवर्तन न होनेसे यह हमको अपने प्राचीन रूपमें मिलना है । यद्यपि गत १८०० सौ वर्पोमें इसकी सामाजिक व्यवस्थामें कुछ मतभेद अवश्य होगया है; परन्तु इसके सिद्धान्तोंमें न तो कोई पावश्यक दात मिलाई गई है और न कोई वान घटाई ही गई है जैनधर्म की अपूर्व पूर्णताको समझनेके लिये यह आवश्यक है कि इसके सिद्धान्तोंका वर्णन संक्षेपसे किया जाय । । जैन धर्म बताता है कि प्रात्माका मुख्य उद्देश्य परम सुख अर्थात् परमात्मापनकी अवस्थाका प्राप्त करता है यद्यपि आत्मा प्रत्येक अवस्थामें इस उद्देशसे अभिक्ष नहीं रहता है। जैन धर्म यह और भी बतलाता है कि आत्मा अपनी ही कृतिसे इस परमपदको पा सका है, कभी किसी दूसरेकी कृपा
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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