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________________ संदेश ग्यारहवा [४५ उसे क्या डर होगा । बल्कि व्यभिचारजात र्दस्ती विवाह के लिये तैयार करना एक असफल सन्तान अधिकारी न होने से उसका डर कम दाम्पत्य का निर्माण करना है । इसलिये अगर हो जाता है । जब व्यभिचारजात सन्तान सम्पत्ति टेक्स लगाना हो तो कुछ आमदनी का नियम की उत्तराधिकारी होने लगेगी तब व्यभिचार करना रखना होगा कि अविवाहित कर चालीस या पचास कुछ कठिन ही हो जायगा । रुपया से अधिक मासिक आमदनी वाले को लगाया ___परन्तु इससे कुटुम्ब कलह बढजॉयगे । जाय । फिर भी जो व्यभिचार हो उस पर यथापुरुप के अपराध के कारण उसकी पत्नी सन्तान चित दडादि व्यवस्था की जाय । यहा एक बात आदि के साथ अन्याय होगा इसलिये साम्पत्तिक और ध्यान मे रखना चाहिये कि जब तक देशमे अधिकार के विषय मे कुछ नियम बनाना होगे। जन सख्या बटाने की जरूरत नहीं है तब तक १-व्यभिचार करनेवाले अगर दोनो ही विवाह के लिये विवश करना ठीक नहीं मालूम अकले हो (पतिहीन और पत्नीहीन) तो साम्पत्तिक होता । खर, उत्तराधिकारित्व का नियम लागू हो। और दोनो व्यभिचार की छुट्टी दे देना और मनुष्य को पतिपत्नी माने जाँय । अगर सधवा और सपत्नीक पशु कोटि मे जाने देना एक प्रकार की अति है, व्यभिचार करे तो वे अपराधी समझे जॉय और और व्यभिचार रोकने के लिये व्यभिचारजात उनका सम्बन्ध तुडा दिया जाय । सन्तान का गला घोटना दूसरे प्रकार की अति है। २-वेश्याओ के विषय मे दाम्पत्य बनाने का निरतिवाद व्यभिचार रोकना चाहता है पर व्यभिनियम लागू न हो। चारजात की रक्षा करना चाहता है । किसी का उचित अविकार मारा न जाय संदेश ग्यारहवा इसके लिये आवश्यक उपनियम और भी बन एक देश इसर देश पर एक जाति दूसरी जॉयगे। पर साधारण बात यह है कि व्यभिचार जाति पर एक प्रान्त दूसरे प्रान्त पर शासन न बुरा होने पर भी बेचारी व्यभिचारजात सन्तान को । भौगोलिक सीमाओ के आधार पर राष्ट्रो वरी न समझी जाय । व्यभिचार को रोकने के का निर्माण हो और शासन की स्वतन्त्रता उस लिये जो टड और शिक्षण की आवश्यकता हो देश की जनता को रहे । वह अवश्य दिया जाय । भाष्य-पहिले सन्देश की अगर पृत्ति होजाय कहा जा सकता है कि हरएक युवक और तो इसकी आवश्यक्ता बहुत कम रह जाती है । युवती को विवाहित होना अनिवार्य कर दिया पर जब तक पहिले सन्देश की पूर्ति न हो तब जाय और जो विवाह न करे वह टेक्स दे । ऐसा तक इसकी आवश्यकता तो है ही साथ ही प्रथम होने पर व्यभिचार रुक जायगा । सन्देश की पूर्ति के बाद भी है । प्रथम सन्देश परन्तु व्यभिचार तो इस अवस्था मे भी नही से इन सीमाओ के अन्दर रोटी बेटी व्यवहार की रुक सकता, हा, कम अवश्य हो सकता है । पर खुलासी मिलती है परन्तु ऐसी भी परिस्थितियाँ जो मनुष्य इतना पैदा न कर सकता हो कि वह है जब रोटी बेटी व्यवहार की खुलासी होजाने पर पत्नी और सन्तति का पालन कर सके उसे जव- भी शास्य शासक का भेद बना रहता है । पहिला
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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