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________________ ४४] निरतिवाद की गवाही काम आयगी । इस प्रकार विवाह का सन्देश दसवॉ रजिष्ट्रेशन जरूर हो, विशेष विधि या उत्सव व्यभिचार घृणित समझा जाय परन्तु व्यभिस्वेच्छा पर निर्भर रहे। . चारजात सन्तान घृणित न समझी जाय । समाज ___गोद का. रिवाज कोई हानिकारक नहीं मे इसके अधिकार पूरे रहे । मालूम होता । अपना बच्चा तभी गोद दिया जाता । भाष्य-बहुत से लोगो का ऐसा भ्रम है कि है जब वह किसी श्रीमान् के घरमे जाता है। गोद व्यभिचार पाप होकर के भी क्षग्य है जब कि मे जाने से बच्चे के हित की कोई हानि होने की व्यभिचारजातता क्षम्य नहीं है। इसलिये व्यभिसंभावना नहीं है । नुकसान तो बच्चे के माता चारियो को तो शुद्ध करके सामाजिक अधिकार पिता का हो सकता है सो वह तो अपना नफा दे दिये जाते हैं पर व्यभिचारजातो को सदा के नुकसान विचार कर दे ही रहा है। इस प्रकार लिये अलग कर दिया जाता है । यह पूरा अधेर न तो बच्चे की हानि है न गोद देने वाले और है । जिन स्त्री पुरुषो ने व्यभिचार किया वे ही लेनेवाले पर कोई जबर्दस्ती है ऐसी हालत मे दोषी है उनको ही दड देना चाहिये । व्यभिचार गोद के रिवाज से अगर किसी की पत्रैपणा शात से पैदा होनेवाले बच्चे का क्या दोप है । इसलिये होती है तो क्या हानि है ? वह सतान पैदा करने उसे तो धर्म, समाज, राष्ट्र के जितने अधिकार के लिये दूसरी शादी करना चाहे पत्नी पर अप्र- है सब मिलना चाहिये । एक निरपराधी को सन्न रहे या उत्तराधिकारी के अभाव मे दुखी रहे ही दड देना अन्याय है । हा, व्यभिचारजातता से दड दना इससे तो यही अच्छा है कि वह किसी बालक उसमे बल बुद्धि सौन्दर्य सदाचार आदि मे कोई या युवकको गोद लेले । इस कार्य मे किसी के त्रुटि होती हो तो उसका फल उसे साथ कोई जबर्दस्ती तो होती ही नहीं कि अन्याय आपसे ही मिल जायगा उसके लिये दड देने की आपस हो जाय । इस प्रकार गोद लेने की प्रथामे कोई जरूरत नहीं है । पर यह भूलना न चाहिये कि व्यभिचारजातता . से बल बुद्धि आदि मे कोई त्रुटि बुराई नहीं मालूम होती। नहीं होती। ___हा, कही कहीं पर पुरुष को गोद लेने का कोई यह समझते है कि इससे व्यभिचार अधिकार है और स्त्री को नहीं है यह बात पर रोकथाम लगती है पर बात यह नहीं है । अवश्य ही अनुचित है । यह पक्षपात जाना चाहिये। व्यभिचार से सन्तान पैदा होगी और उसे सामाविवाह सस्था मे जो जाति या ,सम्प्रदाय जिक अधिकार न मिलेगे । वल्कि इसलिये डरता आदि के नाम पर वधन है वह एक तरफ का है कि सन्तान होने से व्यभिचार का प्रबल प्रमाण अतिवाद है और अनमेल विवाहादि की जो छूट समाज के हाथ मे आजायगा इसलिये मैं सजा है वह दूसरी तरफ का अतिवाद है। निरतिवाद पाऊगा और बदनाम हो जाऊगा । इसी डर से अनमेल विवाहो' का - और अनुचित बधनो का वह भ्रूण हत्या करता है। जब हत्या करने का विरोधी है। , . ।। - डर नहीं है तब सन्तान के अनधिकारी होने का
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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