SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निरतिवाद सन्देश सामाजिक एकता के लिये है और यह भिमान न करे । अपना स्वार्थ देखता हो तो देखे राजनैतिक एकता तथा वराबरी के लिये है । एक परन्तु एक कल्पित समानता के नामपर एक गिरोह दूसरे के पूरक तो है ही। के स्वार्थ को अपना स्वार्थ समझकर मनुष्यता का व्यक्ति व्यक्ति पर आक्रमण करता है उससे खून क्यो करे ? कुटुम्व और मनुष्य के बीचके समाज मे अशान्ति पैदा होती है और नम्बर वार जितने भेद है उन्हे सघर्ष का कारण क्यो वनाये ? दोनो सताये जाते है यही बात राष्ट्रो और प्रान्त इतनी सावारण समझदारी यदि आजावे तो आदि के विषय मे भी है। जगत के राजनैतिक झगडे निर्मूल हो जावे । राष्ट्र __ भारत मे जब जब किसी एक प्रान्त का आदि प्रबन्ध के सुभीते के लिये रह जॉय । जैसे उत्थान हुआ तभी उनने दूसरो को गिराने की एक ही शासन के नीचे ग्राम तहसील और जिल चेष्टा की या उनपर अविकार जमाया इससे निर्विरोध रहते है उसी प्रकार प्रान्त और राष्ट्र उनका पतन हुआ और दूसरों का भी हुआ । भी हो जावे । इसमे सभी का कल्याण है। मराठो का, राजपूतो का सब का ऐसा ही इतिहास है। अपने देश को पराधीन रखना या दूसरे आज बगाली, महाराष्ट्री, गुजराती आदि देश को पराधीन करना दोनो ही अनुचित है । भेदो को मुख्य बनाकर एक प्रान्त दूसर पर वर्चस्व स्वतत्र रहो और दुनिया को स्वतत्र रक्खो यह स्थापित करना चाहे राष्ट्रीय हित को गौण करके निरतिवाद है। प्रान्तीयहितो को मुख्यता दे तो भारत का सर्व ___सन्देश बारहवाँ नाश हो जाये । इनमे जो भापा और रहन सहन । के भेद है वे ऐसे नहीं है जो आमिट हो । वृथा किसी व्यक्तिको अगर दूसरे देशमे जाकर बसना हो तो उसे वहा बसने का पूरा अविकार भिमान की पुष्टि के लिये राष्ट्रीयता और मनुष्यता निम्न शती पर रहना चाहिये। की हत्या न करना चाहिये । [क] वहा की भाषा को अपनाना होगा । जो वात प्रान्तो के लिये है वही बात राष्ट्रो [ख] उस देश के निवासियो के साथ रोटी के लिये भी है । एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रपर आक्रमण । करना चाहता है इसके लिये दोनो ही अपनी बेटी व्यवहार को अपनाकर सामाजिक एकता सारी ताकत शस्त्रास्त्रो के बढाने मे लगा देते है। स्थापित करलेना होगी । राष्ट्र मे जनकल्याण के कार्य किनारे रह जाते [ग] अपनी जुदी सस्कृतिका दावा न करना है और नरसहार की तैयारी होने लगती है और होगा और न कोई विशेपाधिकार की मॉग उपकभी कभी लाखो का सहार हो जाता है । जब तक स्थित करना होगी। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को दबाये रखना चाहेगा [घ] बाहर से आकर बसे हुए अन्य लोगो या दबायेगा तब तक आदमी चैन से न रह पायगा। के साथ मिलकर ऐसा कोई गुट्ट न बनाना होगा आदमी मे अगर थोडी भी आदमियत हो जो उस देश के निवासियो पर आक्रमणात्मक तो वह राष्ट्र प्रान्त जाति आदि के नामपर वृथा- सिद्ध हो सके ।
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy