SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२९ उपसंहार थोडा वहत परिवर्तन किया जा सकता है सो वह विन्दु को सामने रख कर कार्य करे और श्रीमानों तो समय आने पर हो जायगा। अभी तो उस को गाली देने मे अपनी शक्ति खर्च न करे तो की आत्मा को समझ कर अपनाने की कोशिश देशको उसके द्वारा कुछ ठोस सेवा मिल सकती है । करना चाहिये । साम्यवादी दलमे गाली न देने वाले जिम्मेदार यद्यपि श्रीमत्ता पर इसमे अकुश है पर अगर व्यक्तियो की-त्यागियो की-विद्वानो की-कमी नहीं श्रीमान लोग विचार करेंगे तो उन्हे मालूम होगा है । जो गाली ही देते है उनका भी कुछ अपराध कि उन्हे दुःखी होने का कोई कारण नहीं है नही है । बात यह है कि यहा की भमि के अनुकल बल्कि उनकी अनियन्त्रित लालसाओ को रोककर निश्चित योजना न होने से इस प्रकार की अस्तउन्हें एक प्रकार की गान्ति दी गई है और प्रजा के व्यस्तता स्वाभाविक है । मै समझता हूँ कि निरकोप और ईर्ष्या से बचाया गया है । और दानादि तिवाद की योजना साम्यवादियो को भी अपने के रूप मे जीवन को सफल बनाने की ओर ध्येय के अनुकूल और व्यवहारू मालूम होगी। उन्हे परिचालित किया गया है । ___बहुत से लोग इस योजना को राजनैतिक साम्यवादियो से मै कहूगा कि भारत की योजना समझेगे । इसमे सन्देह नहीं कि इसका परिस्थिति पर विचार करे । साम्यवाद का पौधा सम्बन्ध थोडा बहुत राजनीति से है भी । इस इस देशकी मिट्टीमे लग सकता है या नहीं ? यदि योजना के कार्य--परिणत होने पर राजनैतिक लग सकता है तो उसके लिये खाद तथा रक्षा के परिवर्तन होना अनिवार्य है । पर मै राजनीति के साधन हम जुटा सकते है या नहीं यह एक प्रश्न अग के रूप मे इस योजना को नहीं रख रहा हू। तो है ही, साथ ही यह भी एक प्रश्न है कि साग्य मै तो इसे सामाजिक क्रान्ति या सामाजिक सुधार वाढ क्या स्थिर चीज बन सकती है ? अभी के रूप मे रख रहा हूँ। बल्कि दूसरे शब्दो मे तो उसकी परीक्षा हो रही है। और ज्यो ज्यो " मैं इसे गर्मिक समझता हू । समय बीतता जा रहा है त्यो त्यो वह निरति- पुराने समय मे वर्म और समाज के नाम पर वाद की ओर ही बढ़ता जा रहा है । भय है कि ही लोग परिग्रह का त्याग करते थे, दान करते थे, कही आवेग मे या किसी क्राति द्वारा वह निरति- अपने व्यापार को सीमित करते थे, राजा लोग वाद की सीमा का उल्लघन कर पंजीवाद मेन आर श्रीमान लोग अपने सर्वस्वका त्याग करके । चला जावे । कुछ भी हो पर कम से कम अभी भिक्षुक बन जाते थे । कोई भिक्षुक अपने ' वह निरतिवाद की ओर जा रहा है। ऐसी हालत द्वार से भूखा निकल जावे तो लोग शर्मिन्दा होत ' म हम निरतिवाद को ही अपना कार्यक्रम बनावे ये ओर समझते थे कि हमसे कोई पाप हो गया । और दूसरो की भूलो से लाभ उठाकर विचार- है । राजसगा भी समाज के इस प्रभाव की अव१६ पूर्वक अपना पथ निर्माण करे तो यह सब नकल हेलना न कर सकती थी। ___करने की अपेक्षा कही श्रेयस्कर है । __आज हमारे सामाजिक और धार्मिक जीवन काग्रेस मे 'सोशलिस्ट पार्टी के नाम से मे यह सब नहीं रह गया है । और राजसत्ता '' जो दल बना हुआ है वह निरनिवाद के दृष्टि- बिलकुल अलग जा पही है
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy