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________________ २८ ] निरतिवाद न हो और उन मे नागरिकता की वास्तविक रहेगा और उसका खर्च राज्य देगा। भोजन सुविधाएँ हो तो उसमे जो आनन्द और शान्ति वस्त्रादि के लिये जो दिया जायगा वह कम नहीं है वह अन्यत्र नहीं । है। हा, ऐयाशी के उन्माद के लिये पैसा नहीं ५-भारत जिस दिशा में आगे बढ रहा मिलेगा और इससे उन्हे बडा लाभ होगा । आज है उसे देखते हुए यह निश्चयात्मकरूप मे कहा दुर्व्यसनो के कारण उनका जीवन बर्बाद हो जा सकता है कि राजाओ की स्थिति सरक्षित जाता है और वे बाहर से वैभव-पूर्ण होने पर भी नही है । जिस युग मे बडे बडे साम्राज्यो के भीतर से खोखले और दुखी होते है । इसमे मिटने मे देर नहीं लगती उस युग मे राजाओ के राजाओ का ही अपराध नहीं है, राजाओ के उखडने में देर न लगेगी । यह ठीक है कि राजा हाथ मे जो अनियन्त्रित सावन है उनका अपराध अपनी शक्ति का उपयोग करके प्रजा की प्रगति भी है । जहा अनियन्त्रित वन और प्रभुत्व हो मे रोडे अटका सकते है पर इससे इतना ही होगा वहा देवता भी दानव बन सकते है फिर राजा कि आज का कार्य कल हो पायेगा । पर वह तो राजा ही है । इस ढानवता से राजाओ का कल राजाओ के लिये बहुत भयकर होगा । प्रजा जीवन सुख शान्ति मय नही हो पाता । इसलिये का कोप खुदाकी चक्की की तरह है जो धीरे यह आर्थिक नियन्त्रण उनके जीवन को पवित्र धीरे चलती है पर अच्छी तरह पीसती है। इस और सुख शान्तिमय बनाने में सहायक होगा। के लिये सब से अच्छा उपाय यही है कि प्रजा आज उनके विषय मे प्रजा का ऐसा खयाल है के साथ राजा लोग उपर्युक्त शर्तीपर सुलह करले, कि राजा लोग लाखो रुपये मुफ्त मे उडा जाते इससे वे भी सदाके लिये निश्चित रहेगे और प्रजा है पर निरतिवादी योजना के अनुसार सुलह हो की भी उन्नति होगी । राष्ट्र की उन्नति के साथ जाने पर उन पर से यह आक्षेप निकल जायगा वे भी उन्नत हो सकेगे। इसलिये वेजा के प्रेमपात्र हो जायगे साथ ही प्रजा के साथ सर्प होने मे अगर वे उनका वैभव या ठाठ करीव ज्यो का त्यो बना सफल भी होगे तो भी चैन से न रह पावेगे और रहेगा। इस प्रकार दोनो ओर राजाओका कल्याण अगर असफल हुए तो मिट जावगे। सफल होने ही है । की सम्भावना बहुत कम है । वे नहीं तो उनके इस प्रकार निरतिवादी योजना के अनुसार उत्तराधिकारी सकट मे पडेगे। इस प्रकार के राजाओ और भारतीय जनता के बीच सुलह हा अशान्तिमय विद्रोहमय चिन्तित जीवन की जाने से राजाओ का भी हित है और भारतीय अपेक्षा प्रजा के साथ सुलह करके शान्तिमय जनता का भी हित है । हा, थोडा थोडा त्याग प्रेम मय जीवन बिताना बहुत अच्छा है। दोनो को करना पडेगा जो कि उचित है । ६-ऊपर की योजना मे राजाओ को वेतन या भेट आज की अपेक्षा कम रक्खी गई उपसंहार है पर सच पूछा जाय तो उसमे कष्ट कुछ नही निरतिवाद की यह योजना पत्थर की लकीर है क्योकि महल मकान ठाठ आदि तो फिर भी नही है इसमे अनुभव और युक्ति के आधार पर
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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