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________________ ३० ] निरतिवाद निरतिवाद इन सब को मिलाकर, सब की सुवि- की दृष्टि मे राजनैतिक । अपनी अपनी दृष्टि है। धाओ का विचारकर पुराने युगको वापिस लाना ऐसी कौनसी योजना है जिस पर लोग हंसे चाहता है पथ-भ्रान्ति दूर कर देना चाहता है। न हो या जिसकी निन्दा न की हो । सो इसके पर वह पुराना युग ज्यो का त्यो तो वापिस विषय मे भी होगा । उन लोगो से मुझे कुछ कहना आवेगा नहीं, उसका तो पुनर्जन्म ही हो सकेगा। नहीं है । पर जिनको यह कार्यकारी जचे, जो निरतिवाद के रूप में उसका पुनर्जन्म इस कार्य के लिये सगठन करना चाहे, तन मन ही समझना चाहिये । किसी की दृष्टि मे यह वचन धन से सहयोग करना चाहे उनको सादर धार्मिक है, किसी की दृष्टि मे आर्थिक और किसी निमन्त्रण है। अति और निरति 'अति' इधर कही अति उधर कही, 'अति' ने अन्धेर मचाया है । कोई कण कण को तरस रहा, अति-उदर किसी ने खाया है । या तो नचती उच्छृखलता, अथवा मुर्दापन छाया है । _ 'अति' का यह अति अन्धेर देख, प्रभु निरतिवाद बन आया है ।
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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