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________________ देशी राज्य [ २७ नियन्त्रण मे है वह सत्ता भारतीय लोकमत की देश के नेताओ को और काग्रेस को उसका समनहीं है। राजाओ को उखाड देने की बातो से दो र्थन करते हुए स्पष्ट घोपणा करना चाहिये भले सत्ताएँ भारतीय लोकमत के विरुद्ध खडी हो जाती ही आवश्यकतानुसार उस मे थोडा बहुत परिहै। बाहर की सत्ता से लडा भी जा सकता है वर्तन कर लिया जाय । पर भीतर की सत्ता के साथ लडाई छेडने से राष्ट्र : राजा लोग अगर इस विषय मे कुछ विचार की शक्ति के टुकडे टुकडे हो जाते है । राष्ट्र करेंगे तो उन्हे बहुत से लाभ दिखाई देगे । कुछ निर्बल हो जाता है। का सकेत यहा किया जाता हैकुछ लोग ऐसे है जो राजाओ के विषय १-कुप्रवन्ध आदि की जिम्मेदारियो से मे कुछ नहीं बोलते अथवा कह देते है कि राजाओ बच जावगे इससे जो उनका अपयश फैलता है को ज्यो का त्यो रक्खेगे । पर इससे राजाओ की वह दूर हो जायगा । शका दूर नहीं होती । भारत मे जो उथल पुथल २-भारत सरकार के एजेन्ट. से उन्हे मची हुई है उसको देखते हुए राजा लोग भी यह डरते रहना पडता है, और भीतर ही भीतर उन नहीं समझते कि भविष्य मे वे ज्यो के त्यो रह से काफी अपमानित होना पडता है । प्रजा का सकेंगे । वे कुछ त्याग करने को भी तैयार है पर बल न होने से उन्हे यह अपमान सहना पडता उनको कुछ ऐसा निश्चित रूप मालूम होना चाहिये है। परन्तु पीछे यह अपमान न सहना पडेगा। जिसे देखकर वे आश्वासन प्राप्त कर सके । हम ३--एक तरफ निर्बलो पर अत्याचार और आप को छेडना नही चाहते इत्यादि मीठी बातो दूसरी तरफ वडी सत्ता से भय, इन दोनो दोपो पर वे भरोसा नहीं रख सकते । वे तो यह समझते है कि आप नहीं छेडन चाहते. तो आप सम से मनुष्यता नष्ट होती है और इससे सच्चा आनन्द का साथी या शिप्य छेडेगा दूसरे लोग छेड़ेंगे। दो नहीं मिलता और न सच्चे मित्र मिलते है । म. गाधी न छेडेगे तो प. जवाहिरलाल छेडेगे । पैसे के बल पर नौकर मिलते है धनके जबतक कि उनके विषय में कोई जिम्मेदार व्यक्ति लोभ से चापलूस मिलते है, हृदय से प्रेम करनेनही ( व्यक्ति तो आज है कल नही ) किन्तु वाले नहीं मिलते । क्योकि राजाओं की वर्तमान कोई जिम्मेदार सस्था ( उदाहरणत. काग्रेस) परिस्थिति प्रजा के ऊपर बोझ सरीखी है । स्पष्ट शब्दो मे कुछ घोपणा नहीं करती तबतक जहा सच्चा प्रेम और भक्ति नहीं है और जीवन राजा लोग कैसे आश्वासन प्राप्त करेगे । राजा बोझ है वहा सच्चा आनन्द कहा से मिलेगा । लोग यहा तक तो सहमत हो जायगे कि रिया- ४-वर्तमान मे राजाओ का जीवन बहुत सनो की बुराईयाँ चली जॉय पर वे यह जरूर कुछ पराधीन है । वे प्रजा के सम्पर्क में आ ___चाहेगे कि उनका व्यक्तित्व बना रहे वे राजा बने नही सकते न सार्वजनिक कार्यों मे भाग ले सकत रहे और अमुक सुविधाएँ भी [ भले ही वे काफी है। जरा जरासी बात के लिये उन्हें बडी सत्ता । मर्यादित हो ] पाते रहे। का मुंह ताकना पड़ता है। अविकार परिमित ऊपर की योजना मे दोनो वाते है इसलिये हो पर निश्चित हो और किसी के द्वेप का विषय
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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