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________________ ६. प्रारणे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ६. पारण कल्प में देवों की उत्कृष्टतः इक्कीस सागरोपम की स्थिति प्रशप्त है। १०. अच्चुते कप्पे देवाणं जहणणं एक्कवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। १०. अच्युत कल्प में देवों की जघन्यतः} न्यूनतः इक्कीस सागरोपम स्थिति प्रजप्त है। ११. जे देवा सिरिवच्छं सिरिदामगंडं मल्लं किडिं चावोणतं प्रारण्णवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उबवण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णता। ११. जो देव श्रीवत्स, श्रीदामकाण्ड, माल्य, कृप्ट, चापोन्नत और प्रारणावतंसक विमान में देवत्व से उपपन्न हैं, उन देवों की उत्कृष्टतः इक्कीस मागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। १२. ते णं देवा एकवीसाए अद्धमासाणं प्रागमति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा। १२. वे देव इक्कीस अर्धमासों/पक्षों में प्रान/आहार लेते हैं, पान करते हैं, उच्छ्वास लेते हैं, नि:श्वास छोड़ते १३. उन देवों के इक्कीस हजार वर्ष में आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है । १३. तेसि णं देवारणं एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं प्राहारले समुप्पज्जइ । १४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे एक्कवीसाए भवगहणेहि सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्तंति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुरखाणमंतं करिस्संति । १४. कुछेक भवसिद्धिक जीव हैं, जो इक्कीस भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिवृत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे। समवाय-सुतं ममवाय-२१
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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