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________________ पच्चक्खाणावरणे लोभे। . - ख्यानावरण-कषाय माया, संज्वलन- " संजलणे कोहे, संजलणे माणे, कपाय क्रोध; संज्वलन-कपाय मान; संजलणा माया, संजलणे लोभे, .. संज्वलन-कषाय माया, संज्वलनइस्थिवेदे, पुवेदे, नपुंसयवेदे.. . कषाय लोभ, स्त्रीवेद, पुवेद/पुरुषहासे, अरति, रति, भय, सोग वेद, नपुवेद/नपुंसक-वेद, हास्य, दुगुछा। 'अरति, रति, भय, शोक, दुगुंछा/. ' जुगुप्सा । . ३. एकमेक्काए णं. प्रोसप्णिीए ३. प्रत्येक अवसर्पिणी का पाँचवाँ-छठा पंचमछट्ठामो समानो एक्कवीसं- पारा | कालखण्ड इक्कीस-इक्कीस एक्कवीसं वाससहस्साई कालेणं हजार वर्ष काल का प्रज्ञप्त है। पण्णताओ, तं जहा जैसे किदूसमा दूसम-दूसमा य । . दुःषमा, दु:पम-दुःषमा। ४. एगमेगाएं णं उस्सप्पिणीए पढमबितियानो समानो एक्कवीसंएक्कवीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णताओ, तं जहादूसम-दूसमा दूसमा य । ४. प्रत्येक उत्सर्पिणी का पहला-दूसरा आरा इक्कीस-इक्कीस हजार वर्ष काल का प्रज्ञप्त है। जैसे किदुःषमा-दुःषमा, दु:षमा । ५. इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए प्रत्येगइया नेरइयाणं एक्कवीसं पलिनोवमाई ठिई पण्णत्ता। ५. इस रत्नप्रभा पृथिवी पर कुछेक नैरयिकों की इक्कीस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है। . ६. छट्ठीय पुढवीए अत्थेगइयारणं नेरइयारणं एक्कवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ६. छठी पृथिवी [तमःप्रभा] पर कुछेक नैरयिकों की इक्कीस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। ७. असुरकुमारणं देवाणं अत्थेगंइयाणं एक्कवीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। ७. कुछेक असुरकुमार देवों की इक्कीस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । . ८. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवारणं एक्कवीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। ८. सौधर्म-ईशान कल्प में कुछेक देवों की इक्कीस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त '. वा. सुत्तं ' . समवाय-२१ . ७६
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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