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________________ दुहविवागेसु रणं पाणाइवायअलियवयण - चोरिक्फकरणपरदारमेहुणससंगयाए महतिब्व-कसाय • इदियप्पमायपावप्पोय - असुहझवसाणसचियाणं कम्माणं पावगाणं पावअणुभाग - फलविवागा . गिरयगइ-तिरिवखजोणि-बहुविहवसणसय - परंपरापवद्धारणं, मणुयत्तेवि प्रागयाणं जहा पावकम्मसेसेण पावगा होति फलविवागा। दुःखविपाक में प्राणातिपात, अलीकवचन/मृपावाद, चौर्यकरण, परदार-मैथुन, संग के द्वारा महातीन कपाय, इन्द्रिय प्रमाद, पाप-प्रयोग और अशुभ अध्यवसाय से संचित पापकर्मों के पाप-प्रनुभाग वाले फलविपाक हैं। नरकगति और तिर्यञ्च-योनि में बहुविध सैकड़ों व्यसनों की परम्परा से प्रवद्ध जीवों के मनुष्य-जन्म में आ जाने पर भी जिस प्रकार अवशिष्ट कर्मों के फलविपाक पापक/ अशुभ होते हैं-उनका आख्यान किया गया है। वहवसणविणास-नासकप्णोठेंगुढ़करचरणनहच्छेयणजिन्मछेयण-अंजण-कदग्गिदाहण-गयचलण - मलगफालणउल्लंवणसूललया - लउडलट्ठिभंजण-तउसीसगतत्त-तेल्लकलकल-अभिसिंचणकुमिपाग-कंपण - वेहवझकत्तण-पतिभयकर - करपलीवणादि-दारुणाणि दुक्खाणि अगोवमाणि । इसमें वध, वृपण-विनाश / नपुंसकता, नासिका, कान, प्रोष्ठ, अंगुष्ठ, हाथ, चरण और नखों का छेदन, जिह्वा-छेदन, अंजनदाह, कटाग्नि से दाहन, हाथी के पांवों से कुचलना, फाड़ना, लटकाना, शूल, लता, लकड़ी और लाठी से शरीर-मंग करना, उबलते हुए वपु/ रांगा और गरम तेल से अभिसिचन, कुंभी/भट्टी में पकाना, कंपित करना, दृढ़ता से वांधना, वेधना, वर्धकर्तन/खाल उधेड़ना, प्रतिमय पैदा करने वाली मशाल जलाना आदि अनुपम दारुण दुःखों का आख्यान किया गया है। बहुविध भव-परम्परानुवद्ध जीव पाप-कर्मत्पी वल्ली से मुक्त नहीं होते । वेदन किये बिना मोक्ष नहीं बहुविविहपरंपराण - बद्धा ण मुच्चंति पावकम्मवल्लीए । अवेयइत्ता हु गयि मोक्खो ममयाय-गुत्तं २४२ समवाय-द्वादशांग
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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