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________________ विपाकश्रुत में सुकृत व दुष्कृत कर्मों के फल-विपाक का आख्यान किया गया है। वह संक्षेप में दो प्रकार का प्रज्ञप्त है। जैसे किदुःखविपाक और सुखविपाक । उनमें दस दुःखविपाक हैं और दस सुखविपाक । वह दुःखविपाक क्या है ? वह दुःखविपाफ में दुःखविपाक वाले जीवों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता-पिता, समव सरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, नगरगमन, संसार-प्रबन्ध और दुखपरम्परा का आख्यान किया गया विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे प्राघविज्जति । से समासो दुविहे पणत्ते, तं जहादुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव । तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि । से कि तं दुहविवागाणि ? दुहविवागेसु णं दुहविवागाण नगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहानो नगरगमणाई संसारपबंधे दुहपरंरामो य प्रायविज्जति । सेत्तं दुहविवागाणि । से कि तं सुहविवागाणि ? सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहानो इहलोइय - परलोइया इडिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जानो सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई परियागा संलणामो भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियानो य ाघविज्जति । यह है वह दुःखविपाक । वह सुखविपाक क्या है ? सुखविपाक में सुखविपाक वाले जीवों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, ऐहलौकिक-पारलौकिक ऋद्धि-विशेष, भोग-परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुतग्रहण, तप-उपधान, पर्याय, संलेखना, भक्त-प्रत्याख्यान, प्रायोपगमन, देवालोक-गमन, सुकुल में पुनर्जन्म, पुनः बोधिलाभ और अन्तक्रिया का आख्यान किया गया है। समवाय-सुत्तं २४१ समवाय- द्वादशांग
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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