SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पण्हावागरणसु रणं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुप्रोगदारा संखेज्जानो पडिवत्तीप्रोसंखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जानो निज्जुत्तीयो संखेज्जागो संगहरणीयो। प्रश्नव्याकरण की वाचनाएं परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिप्रतियां संख्येय हैं, वेष्टन संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, नियुक्तियां संख्येय हैं, संग्रहरिणयां संख्येय हैं। से णं अंगट्टयाए दसमे अंगे एगे सुयक्खंधे पयणालीसं अज्झयणा पणयालीसं उद्देसणकाला पणयालीसं समुद्देसरणकाला संखेज्जारिण पयसयसहस्साणि पयग्गेण, सखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणता पज्जवा। यह अंग की दृष्टि मे दसवां अंग है। इसके एक श्रुतस्कन्ध, पैंतालीस अध्ययन, पैंतालीस उद्देशन-काल, पैंतालीस समुद्देशनकाल, पद-प्रमाण से संख्येय शतसहस्र/लाख पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्याय है । परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा श्राघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदसिज्जंति । इसमें परिमित स जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निवद्ध और निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है। से एवं प्राया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरण-करणपरुवरणया पाविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निसिज्जति उवदंसिज्जति । यह प्रात्मा है, जाता है, विज्ञाता है, इस प्रकार इसमें चरण करण-प्ररूपरणा का पाख्यान किया गया है प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है। सेतं पण्हावागरणाई । यह है वह प्रश्नव्याकरण । १२. से किं तं विवागसुए ? १२. वह विपाकश्रुत क्या है ? समवाय-मुत २४० समवाय-द्वादशांग
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy