SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विज्जति परुविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं अंतगडदसाओ । १०. से किं तं प्रणुत्तरोववाइय दसाश्रो ? गं अणुत्तरोववाइयदसासु प्रणुत्तरोववाइयाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाइं वणसंडाई रायाणी अम्मापियरो समोसरपाई घम्मायरिया धम्मकहा इहलोइय-परलोइया इड्डिविसेसा नोगपरिच्चाया पव्वज्जाश्रो सुयपरिग्गहा तोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भतपच्चवखारणाई पानोवगमणाई प्रणुत्तरोववत्ति सुकुलपच्चायाती पुरणवोहिलामो अंतfafrat यत्राघविज्जति । अणुत्तरोववाइयदसासु तित्थकर समोसरणाई परममंगलजगहियाणि जिगातिसेसा बहुविसेता जिणसोसाणं चैव समणगणपवरगंधहत्यीणं । विरजताएं परिसहसेा-रिउबलपमद्दणाणं तव दित्त-वरितपाण सम्मत्तसार- विविहप्पगारवियर पसत्यगुण - संजयाल arrenहरिसोनं प्रणनार गमवाप सुन P प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है । यह है वह अन्तकृतदशा । १०. अनुत्तरोपपातिकदशा क्या है ? अनुत्तरोपपातिकदशा में अनुत्तरोपपातिकों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण धर्माचार्य, धर्मकथा, ऐहलौकिक- पारलौकिक - ऋद्धि-विशेष, भोग- परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुतपरिग्रहरण, तप-उपवान, पर्याय, संलेखना, भक्त प्रत्याख्यान प्रायोपगमन अनशन, अनुत्तर, विमान में जन्म, सुकुल में पुनर्जन्म, पुन: वोविलाभ और अन्तक्रिया का आल्यान किया गया है । २३६. अनुत्तरोपपातिकदशा में परम मंगल और जग हितकर तीर्थङ्कर के समवसरण जिनेश्वर के बहुविशिष्ट प्रतिजय तथा जिनशिप्य एवं श्रमणगंगा में श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान, स्थिर यश वाले, परीपह सैन्य रूपी रिपुवल का प्रमर्दन करने वाले, तपोदीप्त चारित्र ज्ञान एवं सम्यक्त्व-सार, विविध प्रकार के विस्तार वाले प्रशस्त गुणों से संयुक्त, समवाय-द्वादशांग
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy