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________________ रयो विप्पक्को, मोक्ख सुहमणुत्तरं च पत्ता | एए अणे य एवमाइग्रत्था वित्थारे परूवेई | अतगडदसासु णं परिता वायरणा संखेज्जा प्रणयोगदारा संखेज्जाश्रो पडिवत्तीश्रो संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाश्रो निज्जुत्सीओ सखेज्जा संगहणी । से गं अंगवाए श्रमे अंगे एगे सुयक्खं दस प्रज्भयणा सत्त arit दस उद्देणकाला दस संखेज्जाइं पयसयसहस्साइं पयगेणं, संखेज्जा, श्रक्खरा प्रणंता गमा, श्रणंता पज्जवा । परिता तसा प्रणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा शिकाइया जिरणपण्णत्ता भावा श्राघविज्जति पण्णविज्जंति परुविज्जंति दंसिज्जति निदंसिज्जंति उवदसिज्जति । से एवं प्राया एवं णाया एवं विष्णाया एवं चरण-करणपरूवणया प्राघविज्जंति, पण्ण समवाय-सुत्तं २३५ समयों को छेद कर मुनिवर अन्तकृत हुए, तम व रज से मुक्त हुए, अनुत्तर मोक्ष सुख को प्राप्त हुएउनका वर्णन किया गया है । ये तथा इसी प्रकार के अन्य अर्थ इसमें विस्तार से प्ररूपित हैं । अन्तकृतदशा की वाचनाएँ परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिपत्तियां संख्येय हैं, वेष्टन संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, नियुक्तियां संख्येय हैं, संग्रहरिणयाँ संख्येय हैं । यह अंग की अपेक्षा से आठवां अंग है । इसके एक श्रुतस्कंध, दस अध्ययन, सात वर्ग दस उद्देशनकाल, दस समुद्देशन-काल, पदप्रमाण से संख्येय शत - सहस्र / लाख पद संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्याय हैं । इसमें परिमित त्रस जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निबद्ध और निकाचित जिन- प्रज्ञप्त भावों का श्राख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है । यह श्रात्मा है, ज्ञाता है, विज्ञाता है, इस प्रकार इसमें चरण-करणप्ररूपणा का श्राख्यान किया गया है, समवाय- द्वादशांग
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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