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________________ पंचाणउइइमो समवायो पंचानवेवां समवाय १. सुपासस्स णं अरहो पंचाणउई गणा पंचाणउइं गणहरा होत्या । २. जंबुद्दीवस्स गंदीवस्स चरिमंतानो चउद्दिसि लवगसमुई पंचाणउई पंचाणउई जोयणसहस्साई प्रोगाहित्ता चत्तारि महापायाला पण्णत्ता, तं जहावलयामुहे केउए जूवते ईसरे। १. अर्हत् सुपार्श्व के पंचानवे गण और पंचानवे गणधर थे। २. जम्बूद्वीप-द्वीप के चरमान्त से चारों दिशाओं में लवण-समुद्र में पंचानवेपंचानवे हजार योजन अवगाहन करने पर चार महापाताल प्रजप्त हैं। जैसे किवडवामुख, केतुक, यूपक और ईश्वर । ३. लवण-समुद्र के उभय पार्श्व पंचानवेपंचानवे प्रदेशों पर उद्वेध /गहराई व उत्सेध/ऊंचाई की परिहानि प्राप्त ३. लवणसमुदस्स उभो पासंपि पंचाणउई-पंचाणउइं पदेसानो उव्वेहुस्सेहपरिहारणीएपण्णताओ। । ४.कुंथू णं अरहा पंचाणउई वास- सहस्साई परमाउं पालइत्ता सिद्ध बुद्ध मुत्ते अंतगड़े परिणिबुडे सन्वदुक्खप्पहीणे। ५. थेरे णं मोरियपुत्ते पंचाणउइ वासाइं सव्वाउयं पासइत्ता सिद्ध बुद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिध्वुड़े सव्वदुक्खप्पहीणे। ४. अर्हत् कुन्थु पंचानवे हजार वर्षों की पूर्ण आयु पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिवृत तथा सर्व दुःखमुक्त हुए। ५. स्थविर मौर्यपुत्र पंचानवे हजार वर्षों की सर्वायु पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत तथा सर्व दुःखमुक्त हुए। '१ . सुत्तं १८ १९८ समवाय-६५ समवाय-६५
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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