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________________ ....... बासीतिइमो समवाश्रो १. जंबुद्दीवे दोवे बासीयं मंडलसयं जं सूरिए दुक्खुत्तो संकमित्ता णं चारं चरइ, तं जहा - निक्खममाणे य पविसमाणे य । २. समणे भगवं महावीरे बासीए राइदिएहि वोक्कतेहि गन्भाओ. गमं साहरिए । ३. महाहिमवंतस्सं णं वासहरपन्च - यस्स उवरिल्ला चरिताश्रो सोगंधियस्त कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं बासीइं जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । ४. एवं रुप्पिस्सव | बयासिवां समवाय १. जंम्बूद्वीप-द्वीप में मण्डल हैं । सूर्य : उनमें संक्रमण कर संचार जैसे कि निष्क्रमरण करता हुआ' और प्रवेश करता हुआ ! यासी २. श्रमण भगवान् महावीर बयासी रात-दिन व्यतीत हो जाने पर [ एक ] गर्म से [दूसरे] गर्भ में संहृत हुए, ३: महाहिमवान् वर्षघर पर्वत के ऊपरी चरमान्त से सौगन्धिक काण्ड ...अधस्तन चरमान्त का अवाघतः अन्तर- बयासी सौ योजन प्रज्ञप्त है । • ४. इसी प्रकार रुक्मी का भी ।
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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