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________________ एक्कासीइइमो समवाश्रो १. नवनवमिया णं भिक्खुपडिमा एक्कासी राइदिएहि चहि य पंचत्तह भिक्लास एहि श्रहासुतं महाकप्पं अहामग्गं ग्रहातच सम्मं कारण फालिया पालिया सोहिया तोरिया किट्टिया प्राणा राहिया यावि भवइ । २. कुस्तणं अहो एक्कासीति मणपज्जवनाणिसया होत्या । ३. विमाहपण्णत्तीए एक्कासीति महाजुम्मसया पण्णत्ता | समवाय-सुतं १७६ इक्यासिवां समवाय १. नव नवमिका भिक्षु प्रतिमा इक्यासी रात-दिन में चार सौ पांच भिक्षा [ - दत्तियों ] से सूत्र के अनुरूप, कल्प के अनुरूप, मार्ग के अनुरूप और तथ्य के अनुरूप, काया से सम्यक् स्पृप्ट पालित, शोषित, पारित, कीर्तित और आज्ञा से प्रारावित होती है । २. अर्हतु कुन्यु के इक्यासी सो मनःपर्यवज्ञानी थे । ३. व्याख्याप्रज्ञप्ति में इक्यासी महायुग्मशत प्रज्ञप्त हैं । समदाय - =१
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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