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________________ तेयासिइइमो समवायो तिरासिवां समवाय १. समणे भगवं महावीरे बासीइ राइदिएहिं वीइक्कतेहिं तेयासीइमे राइदिए वट्टमाणे गम्भानो गन्मं साहरिए। २. सीयलस्स गं अरहो तेसीति गणा तेसीति गरगहरा होत्था। ३. थेरे गं मंडियपुत्ते तेसोई वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुड़े सव्व दुपखप्पहीणे। ४. उसमे एं अरहा कोसलिए तेसीई पुव्वसयसहस्साई अगारवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगारामो अणगारिनं पन्वइए। ५. भरहे रणं राया चाउरंतचक्कवट्टी तेसीइं पुन्वसयसहस्साई प्रगारमझावसित्ता जिणे जाए केवली सवण्णू सव्वभावदरिसी। १ श्रमण भगवान् महावीर बयामी रात-दिन व्यतीत होने पर तिरासिवें रात-दिन के वर्तने पर [एक] गर्भ से [दूसरे] गर्भ में संहृत हुए। २. अहव शीतल के तिरासी गण और तिराणी गणधर थे। ३. स्थविर मंडितपुत्र तिरासी वर्ष की सर्वायु पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत तथा सर्व दु:खरहित हुए। ४. कौशालिक अर्हत ऋषभ ने तिरासी शत-सहस्र/लाख पूर्वो तक अगारवास मध्य रहकर, मुड होकर, अगार से अनगार प्रव्रज्या ली। ५. चातुरन्त चक्रवर्ती राजा भरत तिरासी शत-सहस्र/लाख पूर्वो तक अगार-मध्य रहकर जिन, केवली, सर्वज्ञ और सर्वभावदर्शी हुए। समवाय-सुत्तं १८१ समवाय-८.
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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