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________________ एक्कतीसइमो समवाश्रो १. इक्कतीसं सिद्धाइगुणा पण्णत्ता, श्रभिणिबोहियणाणा तं जहा -- खीरणे वरणे सुयणाणावरगे, खीणे श्रोहिणारणावरणे, खीणे मरणज्जवरगाणावरले, खोखे केवलणाणावर से, खीले चक्खुदंसणावरणे, खीणे श्रोहिदंसणावरणे, खोगे केवलदंसणावर, खोरगा निद्दा, खोणा गिद्दाणिद्दा, खीणा पयला, खीरणा पयलापयला, खीणा थोणगिद्धी, खीरो सायावेयरिगज्जे, खीले प्रसायावेय णिज्जे, खीले दंसरणमोहरिणज्जे खीगे चरितमोहणिज्जे, खोगे नेरइयाउए, खी तिरियाउए, खोले मगुस्सा उए, खीणे देवाउए, खोगे उच्चागोए खोणे नियागोए, खीणे सुभरणामे, खीरो असुभणामे, खीगे दाणंतराए, खोगे लाभंतराए, खीये मोगंतराए, खीले उवभोगंतराए, खोये वीरियंतराए । समवाय-तं १११ इकतीसवां समवाय १. सिद्ध आदि के गुण इकतीस प्रज्ञप्त हैं, जैसे कि- १. प्रभिनिवोधिक ज्ञानावरण का क्षय, २. श्रुतज्ञानावरण का क्षय, ३. अवधि ज्ञानावरण का क्षय, ४. मनःपर्याय ज्ञानावरण का क्षय, ५. केवल ज्ञानावरण का क्षय, ६. चक्षु दर्शनावरण का क्षय, ७. चक्षु दर्शनावरण का क्षय, ८. अवधि दर्शनावरण का क्षय, ९. केवल दर्शनावरण का क्षय, १०. निद्रा का क्षय, ११. निद्रा-निद्रा का क्षय, १२. प्रचला का क्षय, १३. प्रचलाप्रचला का क्षय, १४. स्त्यानगृद्धि का क्षय, १५. सात वेदनीय का क्षय, १६. सात वेदनीय का क्षय, १७. दर्शन मोहनीय का क्षय, १८. चरित्र मोहनीय का क्षय, १६. नैरयिक का क्षय, २०. तिर्यञ्च आयुष्य का क्षय, २१. मनुष्य श्रायुप्य का क्षय, २२. देवायु का क्षय, २३. उच्चगोत्र का क्षय, २४. नीचगोत्र का क्षय, २५. शुभनाम का क्षय, २६. अशुभनाम का क्षय, २७. दानान्तराय का क्षय, २८. लाभान्तराय का क्षय, २९. भोगान्तराय का क्षय, ३०. उपभोगान्तराय का क्षय, ३१. वीर्यान्तिराय का क्षय । समवाय- ३१
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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