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________________ १०. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्यंगइ- याणं नेरइयाणं तीसं सागरो- वमाइं ठिई पण्णत्ता। १०. अघोवर्ती सातवीं पृथिवी [महातम: प्रभा] पर कुछेक नैरयिकों की तीस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। ११. कुछेक असुरकुमार देवों की तीस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है। ११. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइ- याणं तीसं पलिअोवमाइं ठिई। पण्णत्ता। १२. उवरिम - उवरिम - गेविज्जयाणं देवाणं जहण्णेणं तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। १३. जे देवा उवरिम-मज्झिम-गेवेज्ज- एसु विमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। १२. ऊर्ध्ववर्ती ऊपरी अवेयक देवों की जघन्यतः/न्यूनतः तीस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। १३. जो देव ऊपरी मध्यम अवेयक विमानों में देवत्व से उपपन्न हैं, उन देवों की उत्कृष्टत: तीस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। १४. ते णं देवा तीसाए अद्धमासेहिं पारणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा । १४. वे देव तीस अर्धमासों/पक्षों में आन/आहार लेते हैं, पान करते हैं, उच्छ वास लेते है, निःश्वास छोड़ते १५. तेसि णं देवाणं तीसाए वास- __ सहस्सेहिं आहारळे समुप्पज्जइ । १६. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे तीसाए भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्सति सन्वदुक्खारणमंत करिस्संति । १५. उन देवों के तीस हजार वर्षों में आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है। १६. कुछेक भव-सिद्धिक जीव है, जो तीस भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, वुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वृत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे। ___ मनवाय-मुक्त ममवाय-सुत्त समयाय-१० समवाय-३०
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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