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________________ २.मंदरे णं पवए धरणितले एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसए किंचिदेसूणे परिक्खेवेणं पण्णत्ते। २. मंदर पर्वत की धरणीतल पर इकतीस हजार छः सौ तेवीस योजन से कुछ कम परिधि प्रज्ञप्त है। ३. जया णं सुरिए सव्वबाहिरियं मंडलं उवसंकमित्ताणं चारं चरइ तया णं इहगयस्स मणुस्सस्स एक्कतीसाए जोयणसहस्सेहि अहि य एक्कतीहि जोयणसएहि तीसाए सटिभागेहि जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फासं हवमागच्छइ। ३. जव सूर्य सर्व-बाह्य-मंडल में उप संक्रमण कर विचरण करता है, तब इस पृथिवीपर मनुष्य को इकतीस हजार आठ सौ इकतीस और एक योजन के साठ भागों में से तीस भाग (३१८३१३ योजन) दूर से आँखों से दिखाई दे जाता है। ४. अभिवडिए णं मासे एक्कतीसं सातिरेगाणि राइंदियाणि राईदियग्गेणं पण्णत्ते। ४. अभिवद्धित मास रात-दिन के परिमारण से इकतीस रात-दिन का प्रज्ञप्त हैं। ५. प्राइच्चे णं मासे एक्कतीसं राईदियाणि किंचि विसेसूणाणि राइंदियग्गेणं पण्णत्ते । ६. इमोसे गं रयणप्पहाए पुढवीए प्रत्येगइयाणं नेरइयाणं इक्कतीसं पलिनोवमाई लिई पण्णता । ७. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयारणं इक्कतीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। . ८. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं इकतीसं पलिप्रोवमाई ठिई पण्णत्ता। ६. सोहम्मीसारणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं जहण्णेणं इक्कतीसं सागरोवमाई ठिई पण्णता। ५. सूर्यमास रात-दिन के परिमाण से कुछ-विशेष-न्यून इकतीस दिन-रात का प्रज्ञप्त है। ६. इस रत्नप्रभा पृथिवी पर कुछेक नरयिकों की इकतीस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है। ७. अधोवर्ती सातवीं पृथिवी पर कुछेक नरयिकों की इकतीस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। ८. कुछेक असुरकुमार देवों की इकतीस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है। ६. सौधर्म-ईशान कल्प में कुछेक देवों की इकतीस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त समवाय-सुत्तं ११२ समवाय-३१
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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