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________________ ( 20 ) श्रद्धान छोड़ना।" निश्चय उपदेश से व्यवहार को छोड़ देंगे, ऐसा मानने में दोष ऐसा कथन सुन कर शिप्य पव नं० 253 में कहता है कि "तुम व्यवहार को असत्यार्थ-हेय कहते हो तो हम व्रत, शील, संयमादि व्यवहार कार्य किसलिए करें? मवको छोड़ देंगे। उससे कहने हैं कि-व्रत शील संयमादिक का नाम व्यवहार नहीं है, इनको मोक्षमार्ग मानना व्यवहार है, उसे छोड़ दे और ऐगा श्रद्धान कर कि इनको तो बाह्य सहकारी जान कर उपचार से मोक्षमार्ग कहा है, ये तो परद्रव्याश्रित हैं तथा सच्चा मोक्षमार्ग वीतराग भाव है, वह स्वद्रव्याधित है। इस प्रकार व्यवहार को अमत्यार्थ हेय जानना। व्रतादिक को छोड़ने से तो व्यवहार का हेयपना होता नहीं है।" उपसंहार इस प्रकार टोडरमलजी साहब ने निश्चय-व्यवहार के विषय . में बहुत ही सुन्दर स्पष्टीकरण किया है, इस दृष्टिकोण को समझ कर तथा इस ही दृष्टि को लक्ष्य में रख कर शास्त्रों का अध्ययन करे व अर्थ समझे तो यथार्थ वस्तुम्वरूप का ज्ञान हो और मिथ्या श्रद्धा का नाश हो। इसलिये मोक्षार्थी जिनासु जीव को अपने कल्याण करने की दृष्टि से उपर्युक्त पद्धति को समझ कर तत्त्वनिर्णय करना चाहिए / पत्र नं० 266 में भी कहा है कि "उन प्रकारों को पहिचान कर अपने में ऐसा दोप हो तो उसे दूर करके सम्यक श्रद्धानी होना, औरों के ही दोप देख-देख कर कपायी नहीं होना क्योंकि अपना भला.बुरा तो अपने परिणामों से है।" ___ इस प्रकार मोक्षमार्ग प्रकाशक में शास्त्रों के अर्थ करने की जो पद्धति बताई है उसके अनुसार स्त्रिों का अभ्यास करके सभी जीव अपने आत्मा का कल्याण करइसी भावना के साथ इस लेख को पूरा करता हूँ।
SR No.010826
Book TitleShastro ke Arth Samazne ki Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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