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________________ १-९० ] पढमं अज्झयणं २१ तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ ८८ ॥ तणं से भागन्दे समणोवासए वहहिं सीलव्वएहिं जाव अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउपित्ता, एक्कारसय उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्टि भत्ताइं अणसणाए छेदत्ता, आलोइयपडिक्कन्ते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवर्डिसगस्स महाविमा - णस्स उत्तरपुरत्थिमेणं अरुणे विमाणे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं आणन्दस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ ८९ ॥ ss 'आणन्देणं, भन्ते, देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ३ अनन्तरं चयं चइत्ता, कहिं गच्छहिर, कहिं उववज्जिहिइ ? " । " गोयमा, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ " ॥ ९० ॥ निक्खेवो ॥ पढमं आणन्दज्झयणं समत्तं ॥
SR No.010825
Book TitleUvasagdasao
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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