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________________ ( ६ ) सवारी में बैठायो न रुपया पैसा ही दो, हां ! आर्यिका तंक जरूरी आगम में बताए अनुसार वस्त्र व पीछी आदि देना चाहिए, पदविरुद्ध पूजादि भी न करना चाहिए, ताकि उन्मार्ग न बढ़ने पावे । आप त्यागमूर्ति बाबा भागीरथ जी वर्णी को ही आदर्श त्यागियों में गिनते हैं और ऐसे ही त्यागीजनों के जो बाहर भीतर एकसे हैं व जिनसे धर्म मार्ग में कोई अपवाद नहीं आता, उन्हीं को सत्समागम सदा चाहते हैं । मात्र श्राप भेष के पुजारी नहीं हैं और ऐसा ही परीक्षा प्रधानी होने का सब को उपदेश करते हैं। आपके आगमानुसार तथा दृष्ट श्रुत व अनुभूत विचारों से भरे हुए लेखों व पुस्तकों से आपकी धार्मिक श्रद्धा व निर्भीकता का भली भांति परिचय हो सकता है । प्रस्तुत पुस्तक में आपने गृहीत तथा अगृहीत मिध्यात्व' का खंडन करके सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र का कैसी सरलता व अध्यात्म शैली से वर्णन किया है, वह तो पाठक इसे पढ़कर ही समझ सकेंगे, हम को तो मात्र इतना ही कहना है कि वर्तमान समय में जैन समाज में और विशेष कर महिला मंडल में ( स्वाध्याय के अभाव तथा अविद्या के कारण से ) गृहीत मिध्यात्वादि का बहुत प्रचार हो गया है, जिससे वे सत्य धर्म से दूर होते जा रहे हैं, तथा कर्तृत्त्ववाद व सम्प्रदाय ( मत ) का एकांत पक्ष भी बढ़ता जाता है । अतएव उनके लिये ऐसी २ पुस्तकों की बहुत आवश्यकता है, ताकि वे तत्त्वार्थ का स्वरूप समझकर सन्मार्ग में अग्रसर हो अपना इहलोक 'तथा परलोक में कल्याण कर सके I .
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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