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________________ पहुंचने का प्रोग्राम न बनाना चाहिये और न वचन ही देना चाहिये.और न मेलों ठेलों प्रतिष्ठादिके समय बहु जन सम्मेलनों में ही जाना चाहिये क्योंकि वहां न चा ही बनती है न शांति से निराकुल होकर धर्म ध्यान ही हो सकता है, श्रावकों को भी आपका उपदेश यही रहता है कि किसी भी त्यागी संयमी को अपने नगर में आने पर निरुपद्रव स्थान अपाश्रय आदि में [जहां कोई भी जोखम न हो कि जिसके चोरी जाने का भय हो ] ठहरोयो, उनके पदानुसार तखत घासे आदि वस्तुओं व प्रासुक जलादि का प्रबन्ध कर दो, समय २ उनकी खबर लेते रहो। . __ भोजन के समय वही शुद्ध प्रासुक सादा भोजन, जो तुम करते हो, आदर से उनको करादो, भोजन में मेवा फलादि का आडम्बर मत करो न खर्चीला भोजन बनाओ, तात्पर्य-भोजन में बनावट सजावट न हो, परन्तु शुद्ध सादा ऋतु अनुकूल नित्यानुसार हो, क्योंकि आडम्बर बहुत काल या सदा नहीं चल सकता और इसलिये वह दान के मार्ग को बन्द करने व दाता और पात्र दोनों के संक्लेशता का हेतु होजाता है । तथा प्रत्येक त्यागी संयमी से उपदेश सुनो और बिचारो कि वह आगम के अनुसार है ? उनके चरित्र पर दृष्टि रखो और देखो इनमें बीतराग विज्ञानता [ज्ञान वैराग्य सहित चरित्र ] वृद्धि रूप है या नहीं है ? यदि दोष दर्शन हो तो निर्भीक होकर सुधरवाओ और जो वे न सुधारें तो बिना संकोच उनका मानना व पोषण करना छोड़दो, तथा अपने साधर्मी जनों को भी सचेत करदो, अपने यहां से बिदा करदो, उनको नवमी प्रतिमा से ऊपर न
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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