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________________ लाकरोड़ा के सज्जनों ने इसको प्रकाशित कराकर समाज का उपकार किया है । अतएव वे तो धन्यवाद के पात्र हैं. ही, परन्तु जो सज्जन नरनारी इसको पढ़कर व अन्यजनों को सुनाकर स्वपर श्रोत्मोपों से मिथ्याव को हटावेंगे वे भी धन्यवाद के पात्र होगें। अन्त में एक बात कहकर वक्तव्य को समाप्त करूँगा, कि गत २।। वर्षों से वर्णी जी का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया है तथा बिगड़ता जा रहा है फिर भी आप श्री ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम के कार्य की देख रेख व चिन्ता रखते हैं, लेखादि व पुस्तकें भी लिखते रहते हैं, अब भ्रमण नहीं कर सकते तो भी धर्म प्रेमवश लोगों के आग्रह से उनके साथ कभी २ चले जाते हैं। अतएव ऐसी अवस्था में जो भी वे अपनी प्रौढ़ लेखनी से लिखें व रचना करें, उसका प्रकाशन समाज कराकर जनता को लाभ पहुँचाती रहे, ऐसी प्रार्थना है और वर्णीजी स्वास्थ्य लाभ करके चिरायु होकर पवित्र जिन धर्म की सेवा करते रहें, ऐसी भावना हैं। निवेदक (पंडित ) छोटेलाल जैन परवार, सुपरिन्टेन्डेण्ट प्रे० मो० दि० जैन, बोर्डिङ्ग हाऊस, सलोपोसरोड, अहमदावाद ।
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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