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________________ किसी को किसी अंश में कुछ सफलता इन देवी देवताओं की मा. न्यता करते हुए या किसी धूर्त मंत्रादि के ढोंग फैलाने वाले के निमित्त से याजोगीजंगड़ादि के कारण से होगई,तो इनका श्रद्धान यही होजाता है, कि इस देवी देवता यो मंत्रावादी, जोगी साधुने ही कर दिया है इत्यादि। इस से वे लोग फिर औरों को भी उन के पूजने मानने की प्रेरणा करने लगजाते हैं और तब इन से सच्चे, देव (बहत) गुरू निम्रन्थ दिगम्बर) तशा दया धर्म तो बिलकुल दूर होजाते है । इस लिए इन को किसी भी तरह मानना उचित नहीं है। - एक समय मैं एक ब्राह्मण और एक सोनी के लड़के के साथ एक मेले में गया, वहाँ तम्बू लगाकर रहा, सर्दी बहुत होने से सवेरे रेतमें तम्बू के पास लकड़ो जलाकर हम नोग ताप रहे थे, उस समय सोनी मुत्र (जो काला भुसण्ड था)लंगोटी मात्र लगाए चिलम अर्थात् तम्बाकू पीता हुआ कौतुक से बैठा था,सब मनोबिनोद की बातें कर रहे थे, इतने में सास-बहू दो खियां वहाँ से निकलीं, उनमें बहू को गर्भवती देखकर हास्यभाव से सोनी पुत्र कुछ राख ( भस्म ) हाथ में लेकर बोला, ले भभूति आज ही तेरे लड़का होगा, इस पर वे स्त्रियां कुछ बड़बड़ाती हई चली गई, हम लोग भी शौच स्नान करने चल दिये, बाद लगभग १ बजे दिन को जब मैं डेरा रखा रहा था, और दोनों साथी मेला देखने गये थे, वही ( सवेरे वाली.) बुढ़िया कुछ फल और मिठाई लेकर आई और पूछने लगी, कि सबेरे जो बाबा यहाँ बैठा था, सो कहाँ गया। मैंने पूछा, क्यों क्या काम है?
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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