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________________ ( ६४ ) बुढ़िया-बेटा ! उनके आशीर्वाद से मेरी बहू को लड़का हुआ है, सो मैं फूलके बदले पांखुरी रूप यह भोग उनके लिये लाई हूं। वे बड़े महात्मा हैं, सवेरे मैं उनको पहिचान न सकी । इसीसे कुछ बोल गई थी, सो उनसे माफी चाहती हूं, मैंने यह कहकर मिठाई फल कौतुक से ले लिए, कि माई वे बाबाजी तो फेरी को निकल गये हैं, उनके तो सब पर दयाभाव हैं, सो चिन्ता न करो, मैं उनको यह सब आने पर दे दूंगा, इस प्रत्यक्ष उदाहरण से जानना चाहिए कि न वह साधु था, न उस बाई का हितैषीं, वह तो धूर्त मसखरा था और मसखरी से वोला था यहाँ बाई के गर्भ में बालक था, उसके उसी दिन प्रसूति होनी 'थी, सौ वेसा ही हुआ, और इस धूर्व तथा अपढ़ मसखरे पर उन भोली स्त्रियों की श्रद्धा होगई इत्यादि, बातें प्रायः बना करती हैं और भाले संसारी प्राणी उनमें फँस जाते हैं । इसी प्रकार, मध्यप्रांत के नरसिंहपुर जिले की तहसील गाडरवाडा के सांई खेड़े ग्राम में नर्मदा नदी के तट पर एक वृद्ध अघोरी बाबा कहीं से आकर ठहर गया | इसकी समस्त क्रियाएं मलिन थीं, खराब से खराब असभ्य शब्दों में निर्लज्जपने से प्रायः सभी दर्शक स्त्री पुरुषों को गालियां बकता था, चाहे किसी पर मल-मूत्र 'कफादि उठाकर फेंक देता था, थूक देता था, खाद्य वस्तुओं में मलिन वस्तुए व मिट्टी आदि मिलाकर खा जाता था, तात्पर्यउसकी सब चेष्टायें (बेहोश ) पागल जैसी थीं, तो भी वह बहुत पूज्यमान होगया, दूर २ से लोग स्त्रियां यहां तक कि बड़े २ जमीदार सेठ साहूकार वकील और जज तक उसके यहां आशीचद लेने आते थे, बड़े २ घरों की स्रियां वहू बेटियां भी यात और उसकी असभ्य गालियों को आशीर्वाद मानकर प्रसन्न ·
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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