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________________ ( ६२ ) करते रहें और उनकी संतान परम्परा बराबर चलती रहे । इत्यादि अनुकूल पुरुषार्थ ही करना योग्य है, न कि मंत्र, मंत्र तंत्रादि या गृहों के फेर में पड़कर हानि उठाना चाहिऐ । पुरुषार्थ से ही सिद्धि व सफलता होती हैं । यदि कोई यह कहे, कि जैसे रोग मिटाने को दवा सेवन करते हैं उसी प्रकार अनिष्ट गृह निकालने को मंत्र, जाप्य पूजो दानोदि करने तथा भूतादि बाधा दूर करनेको झाड़ा फूंकी कराना या अमुक देवी देवता की मान्यता करने में क्या हानि है ? उत्तर-दवा कराने से श्रद्धान में बाधा नहीं आती, शरीर के पुद्गल स्कन्धों में जब कोई स्कंध विषैले होजाते हैं या बात पित्त, कफ आदि उपधातुएं प्रतिकूल भोजन वा जल वायु के या ऋतुपरिपर्तन के निमित्त से, कम बढ़ हो जाते हैं या बिगड़ जाते हैं, तब दवाइयों के निमित्त से उनका संशोधन होता है. रेचन विरेचनादि द्वारा भी दूषित पदार्थ शरीर से बाहर निकाल दिये जाते हैं, या लंघन कराकर के उन विकारों को जला दिया जाता है इत्यादि । इससे रोग दूर होना संभव है, परन्तु शरीर में रोग जन्म पीड़ा हो, तब उसकी दवा न करके धूर्त के फेर में पड़कर मंत्रादि का ढोंग करना, उस रोगी को मार देने के समान है । प्रायः चेचक आदि रोगों में तो अज्ञानी लोग बीमार की दवा नहीं करते और शीतला भवानी, माता, वलिया आदि 'की पूजा करते हैं, इससे हजारों बालक बालिकाएं अकाल में मर जाते हैं। इसके सिवाय किसी देवी देवता की सेवा से यद्यपि कुछ होता नहीं है, तथापि पुण्योदय होना हो और कदाचित् 1 · ·
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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