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________________ लेंगे, इससे वहां बड़ा फूलों का ढेर होगया; इतने में राजा. की सवारी भी आ पहुंची, सो राजा ने भी उसे देवता समझकर बहुत सी टोकरी फूल चढ़वा दिया, सवारी निकल जाने के बाद किसी विवेकी पुरुप ने साहूकार से पूछा, भाई यह कौन देव है; कब से स्थापित है कुछ हाल भी बतायो ! तव साहूकार बोलाप्रियवर ! यह अन्धेर देव हैं, श्राज अभी अवतरा है इत्यादि कह हंसते हंसते, सब कथा सुनादी, तात्पर्य ऐसे अनेकों देव कल्पित कर बन गए हैं और बनते जाते हैं और लोग भी देखा देखी बिनाजाने समझे मानने लग जाते हैं, इसे देव मूढ़ता कहते हैं । एक भेढ़ कुएं में गिर जाती है तो उस के पीछे की शोर भेडे भी गिरती व मरती जाती हैं । यही लोक का प्रवाह हो रहा है, किसी ने कहा है। "गतानुगतको लोको, न लोको परमार्थकः । चालुकापुजमात्रेण ताम्रपात्र गतोगतः ।। अर्थात् एक ब्राह्मण गंगा स्नान करने गया, सो अपना ताम्रपान कोई उठान लेजाय, इस शंका से उसे रखकर ऊपर रेत का ढेर कर दिया और शौच स्नान करने लगा, उसे ढेर करते देखकर अन्यान्य नहाने वालों ने भी. वहीं बहुत से ढेर बना दिए, जब ब्राह्मण नहा चुका, तो अपना तानपात्र, खोजने लगा, परन्तु वहाँ तो हजारों ढेर होचुके थे, तब बेचारा उक्त कहावत कहता हुआ कि "लोक' गतानुगतिक देखा देखी करने वाले हैं, परमार्थी विवेकी नहीं हैं, देखो एक रेत के ढेर मात्र करने से ही मेरा तामपान खोया गयाः" चला गया।.. . . .. . . :
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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