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________________ ( ३४. ), दिया । इस प्रकार गणेशजी का सब श्राकार मनुष्य जैसा रहते हुए मुख हाथी जैसा होगया इत्यादि । इस कथा में कितनी सचाई व सम्भवपना है, सो विचारणीय है । मैल से मनुष्य उत्पन्न हो नाना, पिता को पुत्र होने का, त्रिकालज्ञ होने पर भी पता न होना, कोप से मस्तक काट कर फेंक देना और हदने पर भी नहीं पाना, फिर हाथो का मस्तक मनुष्य के लगा देना इत्यादि । बातें प्रमाण वाधित हैं, असम्भव हैं। __ हनूमानजी को पवन से उत्पन्न हुआ बताकर उनको श्राकार बन्दर जैसा बना कर पूजते हैं, कोली या कालिका आदि कितनी ही देवियों की कल्पना करके भयङ्कर मूर्तियाँ बना रक्खी हैं, अनेकों मूर्तियाँ तो ऐसी ही हैं, जिन के आकार का व मांगोपागों का ठिकाना ही नहीं है, ज्यों त्यों उनकी स्थापना कर रक्खो है, कहीं भी एक चौतरा या मढ़िया बना दी, उस पर कुछ पत्थर या मिट्टी का कोई भी आकार बना दिया, तेल सिन्दूर चढ़ा दिया, दीप धूप कर दिया, गूगुल लोभान जला दिया । बस, वही देवतो बन गया, वहीं मान्यता होने लगी, फिर कोई नहीं पूछता यह कोन देव है ? कब से स्थापित हुआ, इसका क्या चरित्र है, इत्यादि । परन्तु देखा देखी पूजने लग जाते हैं। किसी समय एक बड़े नगर में राजा की सवारी निकलने वाली थी, नगर में सफाई हो रही थी, कि इतने में एक. साहूकार के दरवाजे पर कोई अपवित्र दुर्गन्धित पदार्थ आपड़ा, सवारी: पाने को थी, उस समय वहाँ कोई सफाई करने वाला न देख कर, साहूकार ने एक टोकरी, फूल उस पर डाल कर ढक दिया, ऐसा करते अन्य.लोगों ने देख लिया, वे उसका भाव तो न समझे; परन्तु देखा देखी फूल ला लाकर उस पर डालनेः
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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