SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . ( ३६. ). तात्पर्य यह है कि लोक में अविवेकी प्राणी देखादेखी धर्म व देव गुरू मानने लगते हैं, परन्तु देखा देखी धर्म नहीं होता, धर्म तो विवेक-पूर्वक ही हो सकता है ? आज कल भारत में ऐसे अनेकों देवता प्रत्येक प्रांतों में जुदे २ नामों से बन बैठे हैं, और अन्धाधुध उनकी मान्यतो होरही है, जैसे भूत, जखैया, घटोइया, पीर, प्रेत, पैगम्बर, अलीबाबा, शीतला, शासनी, मशानी, चन्डी, मुन्डी, सती, भवानी, भैरों, यक्ष, राक्षस, मटिया, सैयद, महई या मर्की, मालबाबा, सिद्धबाबा, यक्षिणी, काली, माता, होली, पितर, भूमिया आदि और भी कितने नाम धारी जैनेतर नर नारियों द्वारा कल्पित देवी देवता, औरों की देखा देखी, अथवा किसी प्रकार के भय, आशा, स्नेह व लोभ के वश होकर हमारे जैनी भाई विशेष करके जैन देवियां [ नारी] पूजती हैं, कहीं मलीदा चढ़ाती हैं, कहीं बाटी बनाई जाती हैं, कहीं घूघरा [उवाले हुए गेंहू ] कहीं नारियल, गुड़, बतासा, रेबड़ी, पूरी अठवाई, वासी अन्न, हलुवा, वस्त्र, तेल, सिंदूर, तिलके लड्डू आदि चढ़ाते हैं। इनके सिवाय कितने भाई बहिन क्षेत्रपाल, पद्मावती, भैरोंजी, दिक्पाल, व्यंतर श्रादि देवों को शासन देवता मान कर पूजते हैं, भैरोंजी व क्षेत्रपाल को स्थापना, कहीं सुपारी या नारियल में कर देते हैं, फिर खूब तेल सिंदूर चढ़ाते हैं सुनहरी रुपहरी वर्क लगाते हैं, इससे असंख्यात कीट, पतंग, चिऊँटी, मक्खी आदि दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, और चौइन्द्रिय जीव, जो चलते फिरते या उड़ते हुए दुर्भाग्यवश इन पर बैठ जाते हैं, वे तो मरते ही हैं, इसके सिवाय मन्दिरों में गन्दगी भी हो जाती है, भोर तेल सिन्दुर चढ़ते २ ये क्षेत्रपाल इतने बढ़ जाते हैं, कि टूट २ गिरने लगते हैं, अन्तरिक्षपार्श्वनाथ सिरपुर में इनके
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy