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________________ ( २२ ) श्राने पावें, उतना नेते हैं और अपने सिर तथा दाढ़ी मूंछ के बाल कम से कम दो मास में व अधिक से अधिक ४ मास में अपने ही हाथों से बिना किसी मनुष्य या उस्तरा कैची आदि शस्त्र या कोई भस्म-चूर्ण आदिः पदार्थों की सहायता के, अपने आपही-किसी को प्रगट किए बिना ही एकान्त बन उपचन श्रादि निर्जन स्थान में बैठ कर घास फूस की तरह उखाड़ कर फेक देते हैं अर्थात केशलौंच करते हैं, इसलिये कि यदि बाल बहुत बढ़ नॉय तो पसीने तथा धूल आदि के सम्बन्ध से उन में जीव उत्पन्न हो जॉय और उन की हिंसा की सम्भावना हो जाय और . यदि किसी नाई आदि से हजामत करावें तो पराधीन होकर दीनता दिखाना पड़े या किसी के पास याचना करना पड़े या उस्तरादि उपकों का संग्रह करना पड़े, उनकी रक्षादि की चिन्ता करना पड़े इत्यादि दोष उत्पन्न हो जावे। इसलिए अपनी अया'चीक वृत्ति स्थिर रखने के लिए कष्टसहिष्णु बनने के लिए जीवों की रक्षा के लिए, शरीर से ममत्त्व हटाने के लिए, मूल गुण पालन के लिए, एकान्त में अपने हाथ से केशोत्पाटन करना ही योग्य है । इस प्रकार वे साधु २८ मूल गुणों तथा ८४ लक्ष 'उत्तर गुणों का यथा योग्य पालन करते हैं और जो निरन्तर आत्मज्ञान ध्यान व तप में संलग्न रहते हैं, ऐसे साधु तपस्वी ही प्रशंसनीय हमारे गुरू होते हैं। .. . तात्पर्य जो शरीर से भी निर्ममत्व नग्न [अन्तर बाहिर परिग्रह रहित ] केवल संयम [प्राणि रक्षा] पालने के लिए पीछी, शुद्धि के लिए कमण्डलु और ज्ञानाभ्यास के लिए भावश्यक आगम-अध्यात्म अन्य के सिवाय अन्य वस्तुएँ कुछ भी नहीं रखते, बनादि में ठहरते, अन्य सहधर्मी साधुनों के सङ्क
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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