SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६३) और १६ जो २६ भेद कम हुवे तो १३ में से २६ कम होकर करते हैं. केवल ६७ प्रकृति रहती है. . शरीर, बंधन और संघातन तीनों ही एक साथ परस्पर मिले होते हैं इसलिप बंध में तीनों का एक ही में समावेश किया हैं. ___इस ही प्रकार वर्ण, गंध, रस और स्पर्श इन में एकेक का ही बंध होता है इसलिये सामान्य रीति से चार भेद समझे गये हैं। इन सत्तही बंधो, दएअ नय सम्म मीसया बंधे। बंधु दए. सत्ताए वीस दुवीस टुवरण संयं ॥ ३२ ॥ बंध उदीरणा और उदय की अपेक्षा से आठ ही कर्मों की प्रकृतियां. . . वैध, उदीरणा और उदय की अपेक्षा से नाम कर्म की तो उपर बतलाये अनुसार ६७ प्रकृति होती है. . . . बंध की अपेक्षा.से नाम कर्म की ६७ प्रकृति और अन्य सात कर्मों की ५५ प्रकृति किन्तु दर्शन मोहनीय में बंध तो केवल मिथ्यात्व मोहनीय का होता है सम्यक् “मोहनीय और मिश्र मोहनीय का नहीं होता है इससे दर्शन 'मोहनीय की प्रकतियां वध की अपेक्षा से २ कम होगई इसलिये बंध की अपे. ता से नाम कर्म की ६७ और सात कर्मों की ५५ दोनों मिला कर १२२ जिसमें से २ दर्शन मोहनीय की प्रकृतियों में कम .
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy