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________________ . . . (.६२ ) ..... के चालों की अपेक्षा से विहायो गति नाम कर्म भी २ प्रकार के होते हैं। अडवीस जुना तिनवइ, संते वा. पनर बंधणे तिसर्य, बंधण संघाय गहो तणुसु सामण्ण . वण चऊ ॥३१॥ वध उंदीरणा और उदय की अपेक्षा. से नाम कर्म की .....६.७ प्रकृति. : . २८. और ६५ मिलाकर संव. १३ भेद हुवै किन्तु यदि ५ प्रकार के बंधन के स्थान में बंधन १५ प्रकार के समझे जावे • तो. २८ और ७५ मिलाकर १०३ भेद भी होते हैं... किन्तु शरीर, वंधन और संघातन इन तीनों प्रकार के... कर्मों के पांच २ भेद होने से जो.१५ भेद ऊपर उनके समझे गये हैं, अब यदि शरीर, बंधन और संघातन इनको तीन प्रकार के कर्म न समझ कर एक ही प्रकार के समझ लिये जावे तो केवल ५ ही भेद होंगे इस प्रकार १० भेद कम होगये : और इसी ही प्रकार वर्ण गंध रस और स्पर्श के विशेष भेद न लेकर इनको एक ही समझा जावे तो २०. भेदों के स्थान . में ४ भेद रहगये इस प्रकार १६ भेद इन में से कम होगये १० ::
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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