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________________ होने से बाकी १२० रही इस प्रकार बंध की आगे कर्मों की मिल १२० प्रकृति होती है........... ... उदीरणा और उदय की अपेक्षा से १२२ प्रकृति ही होती हैं क्योंकि उदीरणा और उदय तो दर्शन मोहनीय में तीनों ही प्रकृतियों का होता है इस प्रकार उदीरणा और उदय की अपेक्षा से नाम कर्म की ६७ और अन्य सात कर्म कर्मों की ५५ प्रकृति इस प्रकार १२२ प्रकृतियां होती है... . सत्ता में तो सर्व प्रकृतियों भिन्न ही रहती हैं इसलिये नाम की १०३ प्रकृति होती हैं और अन्य सात कर्मों की ५५ होती हैं दोनों को मिलाने से आठ कर्मों की १५८ प्रकृतियां होती हैं. . नरय तिरिनर सुरगई, इगबित्र तित्र चल -पणिदिजाइयो।ओराल विउवाही, तेत्र कम्मण पण सरीरा ॥.३३ ।। .. गति नाम कर्म के ४ भेदः : नारकी जिस कर्म के उदय से जीव नारकी जीवयोनि में उत्पन्न होता है उसको नरकगति नाम कर्म कहते हैं..' तिर्यच-जिस कर्म के उदय से जीव तिर्यंच जीव योनि में उत्पन्न होता है. उसको तिर्यंचगति नाम कर्म कहते हैं...। ....३ मनुष्य-जिंस को के उदय से जीव मंनष्य जीवंयोनि
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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