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________________ . . (२७) ३ अवधि दर्शन-उसे कहते हैं जो अवधिज्ञान से पदार्थ को प्रथम समय में जाने वा देखे... :: . . - . ४ केवल दर्शन-केवल ज्ञान और केवल दर्शन में भेद होना असम्भव है उसमें न सामान्य होते हैं. न विषेश होते हैं. उसका विशेष स्वरूप गीतार्थों से समझना चाहिये। ..... सूत्रों की टीका में मतिज्ञान के व्यंजन अवग्रह, अर्थावग्रह और ईहा इन तीनों को दर्शन में लिया है और अपाय और धारणा को ज्ञानमें लिया है। . .. . . ::: ..मनपर्यव ज्ञान को दर्शन. में नहीं लिया है क्योंकि उसमें विशेष अववोध होता है ।... :: . ' श्रुतज्ञान को भी दर्शन में नहीं लिया है क्योंकि श्रुतज्ञान का विशेष सम्बन्ध मनके साथ होता है। श्रुतंज्ञान और, मतिज्ञान दोनों ही साथ हुवा करते हैं इन दोनों का विशेष संबंध है। :: उपरोक्त चार दर्शनों को जो . आवरण अर्थात् रुकना है उनको दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं। . . . : .. सुह पंडिबोहा निद्दा, निदा निहाय दुक्ख पंडिबोहा पयला ठिोव विट्ठस्स, पयल पयलाय चकमश्रो ॥ ११ ॥............... . . .. 1 सम्पूर्ण शास्त्रों के ज्ञाता..
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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